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भगवती गूत्र-श. २५ उ. ७ चारित्र-पर्यव
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विसुद्धिय-सुहुमसंपराय अहक्खायसंजयाणं जहण्णुकोसगाणं चरित्तपज्जवाणं कयरे कयरे जाव विसेमाहिया वा ?
४३ उत्तर-गोयमा ! सामाइयसंजयस्स छेओवट्ठावणियमंजयम्स य एमि णं जहण्णगा चरित्तपज्जवा दोण्ह वि तुल्ला सव्वत्थोवा, परिहारविसुद्धियसंजयस्स जहण्णगा चरित्तपजवा अणंतगुणा. तस्स चेव उक्कोसगा चरित्तपज्जवा अणंतगुणा, सामाइयसंजयस्स छेओवट्ठा. वणियसंजयस्स य एएसि णं उक्कोसगा चरित्तपजवा दोण्ह वि तुल्ला अणंतगुणा, सुहुमसंपरायसंजयस्स जहण्णगा चरित्तपजवा, अणंतगुणा, तस्स चेव उक्कोसगा चरित्तपज्जवा अणंतगुणा अहक्खायसंजयस्स अजहण्णमणुकोसगा चरित्तपन्नवा अणंतगुणा (१५)।
भावार्थ-४३ प्रश्न-हे भगवन् ! सामायिक संयत, छेदोपस्थापनीय संयत, परिहारविशुद्धिक संयत, सूक्ष्म-सम्पराय संयत और यथाख्यात संयत, · इनके जघन्य और उत्कृष्ट चारित्र-पर्यवों में कौन किससे यावत् विशेषाधिक है ?
४३ उत्तर-हे गौतम ! सामायिक संयत और छेदोपस्थापनीय संयत, इन दोनों के जघन्य चारित्र-पर्यव परस्पर तुल्य हैं और सब से थोड़े हैं। उनसे परिहारविशद्धिक संयत के जघन्य चारित्र-पर्यव अनन्त गुण हैं, उनसे परिहारविशुद्धिक संयत के उत्कृष्ट चारित्र पर्यव अनन्त गुण हैं । उनसे सामायिक संयत
और छेदोपस्थापनीय संयत के उत्कृष्ट चारित्र-पर्यव अनन्त गुण हैं और परस्पर तुल्य हैं। उनसे सूक्ष्म सम्पराय संयत के जघन्य चारित्र-पर्यव अनन्त गुण हैं, उनसे सूक्ष्म-सम्पराय संयत के उत्कृष्ट चारित्र-पर्यव अनन्त गुण हैं, उनसे यथा. ख्यात संयत के अजघन्यानुत्कृष्ट चारित्र-पर्यव अनन्त गुण हैं (१५)।
विवेचन--सामायिक संयत के संयम-स्थान असंख्य होते हैं । उनमें से जब एक
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