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भगवती सूत्र - २५ उ. ७ देवायु स्थिति
२९ उत्तर - हे गौतम! यथाख्यात संयत भी पूर्व कथनानुसार यावत् अजघन्यानुत्कृष्ट अनुत्तर विमान में उत्पन्न होते हैं और कई सिद्ध हो जाते हैं यावत् सभी दुःखों का अन्त करते हैं ।
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३० प्रश्न – सामाइयसंजए णं भंते ! देवलोगेसु उववज्जमाणे किं इंदत्ताए उववज्जइ - पुच्छा ।
३० उत्तर - गोयमा ! अविराहणं पडुच, एवं जहा कसायकुसीले । एवं छेवट्टावणिए । परिहारविसुद्धिए जहा पुलाए । सेसा जहा नियंठे |
भावार्थ - ३० प्रश्न - हे भगवन् ! सामायिक संयत, देवलोक में उत्पन्न होते हुए इन्द्रपने उत्पन्न होते हैं ० ?
३० उत्तर - हे गौतम! अविराधक हो, तो कषाय-कुशीलवत् । इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय संयत भी । परिहारविशुद्धिक संयत, पुलाक के समान । सूक्ष्म संपराय और यथाख्यात संयत, निर्ग्रन्थ के समान हैं ।
देवायु स्थिति
३१ प्रश्न–सामाइयसंजयस्स गं भंते! देवलोगेसु उववज्जमाणस्स aari कालं ठिई पण्णत्ता ?
३१ उत्तर - गोयमा ! जहणेणं दो पलिओवमाई, उनकोसेणं तेत्तीस सागरोवमाई । एवं छेओवट्टावणिए वि ।
भावार्थ - ३१ प्रश्न - हे भगवन् ! देवलोक में उत्पन्न होते हुए सामायिक
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