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________________ (29) देव का ही आयुष्य बाँध सकता है। बाल पंडित वैमानिक देव का आयुष्य क्यों बाँधता है ? इसके उत्तर में बताया है कि- "बालपंडित मनुष्य तथारूप के श्रमण-ब्राह्मण से एक भी धार्मिक आर्यवचन सुन कर धारण करता है और देशविरत होता है, देश-प्रत्याख्यानी होता है । इसलिये वह निदेव का ही आयुष्य बाँधता है । इस स्थल की टीका में श्री अभयदेवाचार्य, अविरत सम्यग्दृष्टि के विषय में लिखते हैं कि- "बालत्वे समानेऽपि अविरत सम्यग्दृष्टिमनुष्यो देवायुरेवं प्रकरोति न शेषाणि ।" अर्थात् बालत्व की अपेक्षा समान होते हुए भी अविरत सम्यग्दृष्टि मनुष्य भी देवायु का ही बन्ध करता है, अन्य नहीं । (५) शतंक ६ उ. ४ के अन्तिम सूत्र (भाग २ पृ. ९९८ उ. १० ) में बताया है कि " वैमानिक देवों में ही प्रत्याख्यान, प्रत्याख्याना प्रत्याख्यान देशविरत ) और अप्रत्याख्यान से बद्ध आयु वाले होते हैं, शेष नरकादि तीन गति में 'अप्रत्याख्यान निबद्धायु' ही जाते हैं ।" इसका तात्पर्य यह है कि सर्वप्रत्याख्यानी और देशप्रत्याख्याना ( श्रावक ) आयु का बन्ध करते हैं, तो एक वैमानिक का हा, क्योंकि देश या सर्वप्रत्याख्यान में केवल देवायु का ही बन्ध होता है, शेष तीन गति के आयु का बन्ध नहीं होता । उपरोक्त सूत्र से यह मी स्पष्ट होता है कि -- अप्रत्याख्यानी भी देवायु का बंध करते हैं, उसमें सम्यग्दृष्टि युक्त बद्धायु भी होते ही हैं। जब मिथ्यादृष्टि भी देवायु का - बन्ध कर सकते हैं, तो जिसने अनन्तानुबन्धी कषाय- चतुष्क और मिथ्यात्व एवं मिश्र-मोहनीय का क्षयोपशम या क्षय कर दिया, वह वैमानिक देव का आयु-बन्ध करे, इसमें तो सन्देह ही नहीं होना चाहिए । (६) शतक २६ उ. १ बन्धी शतक के अंतिम सूत्र (पृ. ३५६६ ) में लिखा है किपंचेन्द्रिय तिर्यंच सम्यक्त्व, ज्ञान, आभिनिबोधिक ज्ञान, श्रुत ज्ञान और अवधिज्ञान, इन पाँच के आयु बन्ध में दूसरा भंग छोड़ कर पहला, तीसरा और चौथा भंग होता है । यथा१ पूर्वभव में आयु बन्ध किया था, वर्तमान में (देवायु) बाँधता है और भविष्य ( देवभव) में मनुष्यायु बन्ध करगा । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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