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________________ ३४५० भगवती सूत्र-श. २५ उ. ७ श्रुत द्वार १८ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठ पवयणमायाओ, जहा कसायकुसीले । एवं छेओवट्ठावणिए वि । भावार्थ-१८ प्रश्न-हे भगवन् ! सामायिक संयत कितना श्रुत पढ़ते हैं ? १८ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य आठ प्रवचन-माता इत्यादि सारा वर्णन कषाय-कुशील के समान । इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय संयत भी। १९ प्रश्न-परिहारविसुद्धियसंजए-पुन्छा। .. १९ उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं णवमस्स पुवस्स तइयं आयार.. वत्थु, उकोसेणं असंपुण्णाई दस पुव्वाइं अहिज्जेजा। सुहुमसंपरायः संजए जहा सामाइयसंजए। । ___भावार्थ-१९ प्रश्न-हे भगवन् ! परिहारविशुद्धिक संयत कितना श्रुत पढ़ते हैं ? .... १९ उत्तर-हे गौतम ! जघन्य नौवें पूर्व की तीसरी आचार वस्तु और उत्कृष्ट दस पूर्व असम्पूर्ण पढ़ते हैं। सूक्ष्म-संपराय संयत, सामायिक संयत के समान है। २० प्रश्न-अहक्खायसंजए-पुच्छा। २० उत्तर-गोयमा ! जहण्णेणं अट्ठ पवयणमायाओ, उकोसेणं चोदस पुष्वाइं अहिज्जेजा, सुयवहरित्ते वा होजा (७)। भावार्थ-२० प्रश्न-हे भगवन् ! यथाख्यात संयत कितना श्रुत पढ़ते हैं ? २० उत्तर-हे गौतम ! जघन्य आठ प्रवचन-माता और उत्कृष्ट चौदह पूर्व पढ़ते हैं अथवा श्रुतव्यतिरिक्त (केवली) होते हैं (७)। विवेचन--श्रुत के प्रकरण में--यथाख्यात संयत यदि निग्रंथ होते हैं, तो जघन्य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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