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भगवती सूत्र - श. २५ उ. ७ ज्ञान द्वार, श्रुत द्वार
१६ उत्तर - हे गौतम! प्रतिसेवी नहीं होते, अप्रतिसेवी होते हैं । इसी प्रकार यावत् यथाख्यात संयत तक ( ६ ) ।
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ज्ञान द्वार
१७ प्रश्न - सामाइयसंजर णं भंते! कइसु णाणेसु होना ? १७ उत्तर - गोयमा ! दोसुवा तिसु वा चउसु वा णाणेसु होजा, एवं जहा कसायकुसीलस्स तहेव चत्तारि णाणाई भयणाए, एवं जाव सुहुमसंपराए । अहक्खायसंजयस्स पंच णाणाई भयणाए जहा णाणुदेसए ।
भावार्थ - १७ प्रश्न - हे भगवन् ! सामायिक संयत में ज्ञान कितने होते हैं ? १७ उत्तर - हे गौतम! दो, तीन अथवा चार ज्ञान होते है । इनमें कषाय- कुशील के समान चार ज्ञान की भजना होती है। इसी प्रकार यावत् सूक्ष्म-संपराय संयत पर्यन्त तथा ज्ञानोद्देशक ( शतक ८ उद्देशक २ ) के अनुसार यथाख्यात संयत के पाँच ज्ञान भजना (विकल्प) से होते हैं ।
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विवेचन - यथाख्यात संयत के लिए पाँच ज्ञान की भजना कही है। इसका कारण यह है कि यथाख्यातं संयत के दो भेद हैं-केवली और छद्मस्थ । केवली यथाख्यात संयत के एक केवलज्ञान ही होता है । छद्मस्थ- वीतराग यथाख्यात संयत के दो, तीन या चार ज्ञान होते हैं । इसके लिए 'ज्ञानोद्देशक' का अतिदेश किया है। यह आठवें शतक के दूसरे उद्देशक में, ज्ञान वक्तव्यता प्रतिपादन करने वाला अवान्तर प्रकरण है ।
श्रुत द्वार
१८ प्रश्न - सामाइयसंजर णं भंते! केवइयं सुयं अहिज्जेना ?
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