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भगवती मून - ग. २५ उ. ७ तीर्थ द्वार,
लिंग द्वार
आठ प्रवचन-माता और उत्कृष्ट चौदह पूर्व का श्रुत पढ़ा हुआ होता है। यदि वह स्नातक होता है, तो श्रुतातीत -- केवली होता है ।
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तीर्थ द्वार
२१ प्रश्न - सामाइयसंजर णं भंते ! किं तित्थे होज्जा, अतित्थे होजा ?
२१ उत्तर - गोयमा ! तित्थे वा होजा, अतित्थे वा होजा, जहा कसायकुसीले । छे ओवट्टावणिए परिहारविसुद्धिए य जहा पुलाए, सेसा जहा सामाइयसंजए ( ८ ) ।
भावार्थ - २१ प्रश्न - हे भगवन् ! सामायिक संयत, तीर्थ में होते हैं या अतीर्थ में ?
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२१ उत्तर - हे गौतम ! तीर्थ में भी होते हैं और अतीर्थ में भी इत्यादि सभी वर्णन कषाय-कुशील के समान । छेदोपस्थापनीय और परिहारविशुद्धिक संयत पुलाक के समान तथा सूक्ष्म संपराय और यथाख्यात संयत, सामायिक संयत के समान जानना चाहिये ( ८ ) |
लिंग द्वार
२२ प्रश्न - सामाइयसंजए णं भंते! किं सलिंगे होजा, अण्णलिंगे होज्जा, गिहिलिंगे होना ?
२२ उत्तर - जहा पुलाए । एवं
ओवावणिए वि ।
भावार्थ - २२ प्रश्न - हे भगवन् ! सामायिक संयंत, स्वलिंग में, अन्यलिंग
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