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भगवती सूत्र -ग. २५ उ. ७ संयत पुलाकादि निग्रंथ होते हैं ?
कप्पे होजा, कप्पाईए होजा ?
११ उत्तर-गोयमा ! जिणकप्पे वा होजा, जहा कसायकुसीले तहेव गिरवसेसं । छेओवट्ठावणिओ परिहारविसुद्धिओ य जहा बउसो, सेसा जहा णियंठे (४)।
भावार्थ-११ प्रश्न-हे भगवन् ! सामायिक संयत, जिनकल्प में होते हैं, स्थविरकल्प में होते हैं या कल्पातीत ?
११ उत्तर-हे गौतम ! जिनकल्प में होते हैं इत्यादि सारा कथन कषाय-कुशील के समान है। छेदोपस्थापनीय और परिहारविशुद्धि संयत का कथन बकुश के समान हैं। सूक्ष्म-संपराय और यथाख्यात संयत निर्ग्रन्थ के समान है (४)।
विवेचम-अस्थित कल्प, मध्य के बाईस तीर्थंकरों के तीर्थ में और महाविदेह क्षेत्र के तीथंकरों के तीर्थ में होता है। वहां छेदोपस्थापनीय चारित्र, और परिहारविशुद्धि चारित्र नहीं होता। इसलिये छेदोपस्थापनीय संयत और परिहारविशुद्धि संयत, अस्थित कल्प में नहीं होते।
संयत पुलाकादि निग्रंथ होते हैं ? १२ प्रश्न-सामाइयसंजए णं भंते ! किं पुलाए होजा, बउसे जाव सिणाए होजा ?
१२ उत्तर-गोयमा ! पुलाए वा होजा, बउसे जाव कसायकुसीले वा होजा, णो णियंठे होजा, णो सिणाए होजा । एवं छेओवट्ठावणिए वि।
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