SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र - श. २५ उ. ७ संयत पुलाकादि निर्ग्रन्थ होते हैं ? भावार्थ - १२ प्रश्न - हे भगवन् ! सामायिक संयत पुलाक, बकुश यावत् स्नातक होते हैं ? १२ उत्तर - हे गौतम! पुलाक, बकुरा यावत् कषाय- कुशील होते हैं, किन्तु निग्रंथ और स्नातक नहीं होते । इसी प्रकार छेदोपस्थापनीय संयत भी । १३ प्रश्न - परिहारविसुद्धियसंजए णं भंते ! - पुच्छा ! १३ उत्तर - गोयमा ! णो पुलाए, णो बउसे, णो पडिसेवणाकुमीले होज्जा, कसायकुमीले होजा, णो नियंठे होज्जा, णो सिणाए होज्जा । एवं सुहृमसंपराए वि । भावार्थ - १३ प्रश्न - हे भगवन् ! परिहारविशुद्धिक संयत, पुलाक यावत् स्नातक होते हैं ? १३ उत्तर - हे गौतम! पुलाक, बकुश, प्रतिसेवना-कुशील और निग्रंथ तथा स्नातक नहीं होते, किन्तु कषाय-कुशील होते हैं । इसी प्रकार सूक्ष्मसंपराय संयत भी । ३४४७ १४ प्रश्न - अहक्खायसंजए- पुच्छा १४ उत्तर - गोयमा ! णो पुलाए होजा जाव णो कसायकुसीले होज्जा, नियंठे वा होज्जा, सिणाए वा होज्जा (५) । भावार्थ - १४ प्रश्न - हे भगवन् ! यथाख्यात संयत, पुलाक यावत् स्नातक होते हैं ? १४ उत्तर - हे गौतम! पुलाक यावत् कषाय- कुशील नहीं होते, किन्तु निग्रंथ या स्नातक होते हैं (५) । विवेचन - चारित्र द्वार में पुलाकादि का कथन किया है। इसका कारण यह है कि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy