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भगया। सूत्र-श. २५ उ. ६ अल्प-बहुत्व द्वार
गुणा, कसायकुसीला संखेजगुणा ।
॥ 'सेवं भंते ! सेवं भंते !' ति जाव विहरइ ॥
॥ पणवीमइमे सए छट्ठो उद्देसओ समत्तो ॥ । भावार्थ-१६३ प्रश्न-हे भगवन् ! पुलाक, बकुश, प्रतिसेवना कुशील, कषायकुशील, निग्रंथ और स्नातक, इनमें कौन किससे अल्प, बहुत्व, तुल्य या विशेषाधिक हैं ?
१६३ उत्तर-हे गौतम ! सब से थोड़े निग्रंथ हैं, उनसे पुलाक संख्यात गुण हैं, उनसे स्नातक संख्यात गुण हैं, उनसे बकुश संख्यात गुण है, उनसे प्रतिसेवना-कुशील संख्यात गुण हैं और उनसे कषाय-कुशील संख्यात गुण हैं।
"हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'-- कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन-बकुश और प्रतिसेवना-कुशील का परिमाण कोटिशतपृथक्त्व कहा है, तो अल्प-बहुत्व में बकुश से प्रतिसेवना-कुशील संख्यात गुण कहे हैं, यह कैसे घटित होगा? इस शंका का समाधान यह है कि बकुश का परिमाण जो कोटिशतपृथक्त्व कहा है, वह दो, तीन कोटिशतरूप जानना चाहिये और प्रतिसेवना-कुशील का कोटिशतपृथक्त्व परिमाण चार, छह कोटिशत रूप जानना चाहिये। इस प्रकार उक्त अल्प-बहुत्व में किसी प्रकार का विरोध नही है। प्रतिसेवना-कुशील और कषाय-कुशील का अल्प-बहुत्व जो संख्यात गुण कहा है, वह तो स्पष्ट ही है, क्योंकि उनका परिमाण कोटिसहस्रपृथक्त्व बताया है ।
॥ पञ्चीसवें शतक का छठा उद्देशक सम्पूर्ण ॥
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