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भगवती सूत्र - २५ उ. ६ अल्प- बहुत्व द्वार
त्थि, जइ अस्थि जहणेणं एको वा दो वा तिष्णि वा, उक्कोसेणं अट्टमयं । पुव्वपडिवण्णए पडुच्च जहण्णेणं कोडिपुहुत्तं, उक्कोसेणं वि कोडितं ३५ ।
भावार्थ - १६२ प्रश्न - हे भगवन् ! स्नातक एक समय मे कितने होते हैं ? १६२ उत्तर - हे गौतम! प्रतिपद्यमान स्नातक कदाचित् होते हैं या नहीं होते । यदि होते हैं, तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट १०८ होते हैं । पूर्वप्रतिपन्न जघन्य और उत्कृष्ट कोटिपृथक्त्व होते हैं ।
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विवेचन - सभी संतों (साधुओं) का परिमाण कोटिसहस्रपृथक्त्व है और यहां तो केवल कषाय-कुशील मुनियों का ही इतना परिमाण (कोटिसहस्रपृथक्त्व) बताया है । उनमें पुलाकादि की संख्या को मिलाने से तो कोटिसहस्रपृथक्त्व से अधिक संख्या हो जायगी । फिर यथोक्त परिमाण में विरोध कैसे नहीं आएगा ? इस शका का समाधान यह है कि कषाय-कुशील संगतों का जो कोटिसहस्रपथवत्व परिमाण कहा है, वह दो, तीन कोटिसहस्ररूप जानना चाहिये । उसमें गुलाक, बकुशादि की संख्या को मिला देने पर भी सर्व संयतों का परिमाण जो कहा है, उससे अधिक संख्या नहीं होगी अर्थात् सर्व सयतों का परिमाण कोटिसहस्रपृथक्त्व हो होता है ।
अल्प- बहुत्व द्वार
१६३ प्रश्न - एएसि णं भंते! पुलाग बउस - पडि सेवणाकुसीलकसायकुसील - नियंठ-सिणायाणं कमरे कयरे जाव विसेसाहिया वा ? १६३ उत्तर - गोयमा ! सव्वत्थोवा णियंठा, पुलाया संखेज्जगुणा, सिणाया संखेजगुणा, बसा संखेज्जगुणा, पडिसेवणाकुसीला संखेन
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