________________
३४३६
भगवती सूत्र श. २५ उ ६ परिमाण द्वार
१६० उत्तर - हे गौतम! प्रतिपद्यमान कषाय-कुशील कदाचित् होते हैं और नहीं भी होते । यदि होते हैं, तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट सहस्रपृथक्त्व होते हैं । पूर्वप्रतिपन्न कषाय -कुशील जघन्य और उत्कृष्ट कोटिसहस्रपृथक्त्व ( दो हजार करोड़ से नौ हजार करोड़ ) होते हैं ।
१६१ प्रश्न - नियंठाणं - पुच्छा ।
१६१ उत्तर - गोयमा ! पडिवज्जमाणए पडुच्च सिय अस्थि, सिय णत्थि, जह अत्थि जहणेणं एक्को वा दो वा तिष्णि वा उक्कोसेणं बावट्टं सतं - अट्टमयं खवगाणं, चउप्पण्णं उवसामगाणं । पुव्यपडवण्णए पडुच्च सिय अत्थि, सिय णत्थि । जइ अस्थि जहणेणं एको वा दो वा तिष्ण वा, उक्कोसेणं सयपुहुत्तं ।
भावार्थ - १६१ प्रश्न - हे भगवन् ! निर्ग्रन्थ एक समय में कितने होते है ? १६१ उत्तर - हे गौतम! प्रतिपद्यमान निग्रंथ कदाचित् होते हैं और नहीं भी होते । यदि होते हैं, तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट एक सौ बासठ होते हैं, इनमें क्षपक श्रेणी वाले १०८ और उपशम श्रेणी वाले ५४- ये दोनों मिला कर १६२ होते हैं । पूर्वप्रतिपन्न निग्रंथ कदाचित् होते हैं और नहीं भी होते । यदि होते हैं, तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शतपृथक्त्व होते हैं ।
Jain Education International
१६२ प्रश्न - सिणाया - पुच्छा ।
१६२ उत्तर - गोयमा ! पडिवजमाणए पडुच्च सिय अस्थि, सिय
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org