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________________ भगवती सूत्र-श. २५ उ. ६ परिमाण द्वार ३४३५ होते हुए) पुलाक कदाचित् होते हैं और कदाचित नहीं होते । यदि होते हैं, तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शतपथक्त्व होते हैं। पूर्वप्रतिपन्न पुलाक भी कदाचित् होते हैं और नहीं भी होते । यदि होते हैं, तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट सहस्रपृथक्त्व होते हैं। १५९ प्रश्न-बउसा णं भंते ! एगसमएणं-पुच्छा। १५९ उत्तर-गोयमा ! पडिवजमाणए पडुच्च सिय अत्थि. सिय णत्थि । जइ अत्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उपकोसेणं सयपुहुत्तं । पुवपडिवण्णए पडुच्च जहण्णेणं कोडिसयपुहत्तं, उकोमेण वि कोडिसयपुहुत्तं । एवं पडिसेवणाकुसीले वि । भावार्थ-१५९ प्रश्न-हे भगवन ! बकुश एक समय में कितने होते हैं ? १५९ उत्तर-हे गौतम ! प्रतिपद्यमान बकुश कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते । यदि होते हैं, तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट शतपृथक्त्व होते हैं । पूर्वप्रतिपन्न बकुश जघन्य और उत्कृष्ट कोटिशत-पृथक्त्व होते हैं । इसी प्रकार प्रतिसेवना-कुशील भी।। - १६० प्रश्न-कसायकुसीलाणं-पुच्छा। - १६० उत्तर-गोयमा ! पडिवजमाणए पडुच्च सिय अस्थि, सिय णत्थि । जइ अस्थि जहण्णेणं एको वा दो वा तिण्णि वा, उको. सेणं सहस्सपुहुत्तं । पुवपडिवण्णए पडुच्च जहण्णेणं कोडिसहस्सपुहुत्तं, उकोसेण वि कोडिसहस्सपहुत्तं । ___ भावार्थ-१६० प्रश्न-हे भगवन् ! कषाय-कुशील एक समय में कितने होते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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