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________________ भगवती सूत्र-श. २५ उ. ६ भाव द्वार ३४३३ भावार्थ-१५४ प्रश्न-हे भगवन् ! पुलाक, लोक के संख्यातवें भाग को स्पर्श करता है या असंख्यातवें भाग को ? १५४ उत्तर-हे गौतम ! अवगाहना के अनुसार स्पर्शना भी जानना चाहिये । इसी प्रकार यावत् स्नातक पर्यन्त । विवेचन-स्पर्श द्वार में कहा है कि यह क्षेत्र अवगाहना द्वार के समान है । इस विषय में प्रश्न होता है कि जब दोनों समान है, तो पृथक् द्वार क्यों कहे हैं ? समाधान है कि--जितने प्रदेशों को अवगाहित कर शरीर रहता है, उतने क्षेत्र को क्षेत्रावगाहना' कहते हैं । अवगाढ़ क्षेत्र अर्थात् जितने क्षेत्र को अवगाहित कर शरीर रहा हुआ है, वह क्षेत्र और उसका पाश्र्ववर्ती क्षेत्र जिसके साथ शरीर-प्रदेशों का स्पर्श हो रहा है, वह सारा क्षेत्र 'स्पर्शना क्षेत्र' कहलाता है । भाव द्वार १५५ प्रश्न-पुलाए णं भंते ! कयरम्मि भावे होजा ? १५५ उत्तर-गोयमा ! खओवसमिए भावे होजा । एवं जाव कसायकुसीले । कठिन शब्दार्थ-कयरम्मि-किस में । भावार्थ-१५५ प्रश्न-हे भगवन् ! पुलाक किस भाव में होते हैं ? १५५ उत्तर-हे गौतम ! क्षायोपशमिक भाव में होते हैं । इसी प्रकार यावत् कषाय-कुशील पर्यन्त । १५६ प्रश्न-णियंठे-पुच्छा। १५६ उत्तर-गोयमा ! उवसमिए वा भावे होजा, खइए वा भावे होजा। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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