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भगवती सूत्र - श. २५ उ. ६ क्षेत्र - स्पर्शना द्वार
१५३ उत्तर - गोयमा ! णो संखेज्जइभागे होज्जा, असंखेज्जइभागे होना, णो संखेज्जेसु भागेसु होजा, असंखेज्जेसु भागेसु
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होज्जा, सव्वलोए वा होज्जा ३२ ।
भावार्थ - १५३ प्रश्न - हे भगवन् ! स्नातक लोक के संख्यातवें भाग में होते हैं ?
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१५३ उत्तर - हे गौतम! लोक के संख्यातवें भाग में और संख्यात भागों में नहीं होते, किन्तु असंख्यातवें भाग में और असंख्यात भागों में तथा सम्पूर्ण लोक में होते हैं ।
विवेचन-क्षेत्र द्वार का अर्थ है - अवगाहना क्षेत्र द्वार अर्थात् पुलाक आदि का शरीर लोक के कितने भाग को अवगाहित करता है ? पुलाक का शरीर लाक के असंख्यातवें भाग को अवगाहित करता है । इसी प्रकार यावत् निर्ग्रन्थ तक जानना चाहिये। स्नातक के विषय में यह समझना चाहिये कि केवलि समुद्घात अवस्था में, जब स्नातक शरीरस्थ होते हैं या दण्ड, कपाट अवस्था में होते हैं, तब वह लोक के असंख्यातवें भाग में रहते हैं, क्योंकि केवली भगवान् का शरीर इतने क्षेत्र परिमाण ही होता है । मन्थानक अवस्था में केवली. भगवान् के प्रदेशों से लोक का बहुत भाग व्याप्त हो जाता है और थोड़ा भाग अव्याप्त रहता है | अतः लोक के असंख्य भागों में रहते हैं और जब समग्र लोक को व्याप्त कर लेते हैं, तब सम्पूर्ण लोक में होते हैं ।
क्षेत्र - स्पर्शना द्वार
१५४ प्रश्न -पुलाए णं भंते ! लोगस्स किं संखेज्जइभागं फु.सइ, असंखेज्जइभागं फुसइ ?
१५४ उत्तर - एवं जहा ओगाहणा भणिया तहा फुसणा वि
भाणियव्वा जाव सिणाए ३३ ।
कठिन शब्दार्थ - फुसणा-स्पर्शना ।
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