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भगवती सूत्र--श. २५ उ. ६ क्षेत्रावगाहन द्वार
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कषाय-समुद्घात पाया जाता है । इस कारण पुलाक में भी कषाय-समुद्घात सम्भव है । पुलाक में मारणान्तिक-समुद्घात कहा है । यद्यपि पुलाक अवस्था में मरण नहीं होता, तथापि मारणान्तिक-समद्घात होता है । क्योंकि मारणान्तिक-समुद्घात से निवृत्त होने पर कषाय-कुशीलत्वादि परिणाम के सद्भाव में उसका मरण होता है । अतः पुलाक में मारणान्तिक समुद्घात का सद्भाव है । निर्ग्रन्थ में एक भी समुद्घात नहीं होता, क्योंकि उसका उसी प्रकार का स्वभाव है।
क्षेत्रावगाहन द्वार १५२ प्रश्न-पुलाए णं भंते ! लोगस्स किं १ संखेन्जइभागे होज्जा २ असंखेजइभागे होजो ३ संखेजेसु भागेसु होज्जा ४ असंखेजेसु भागेसु होजा ५ सव्वलोए होज्जा ? , ... १५२ उत्तर-गोयमा ! णो संखेजहभागे होजा, असंखेजहभागे होजा, णो संखेजेसु भागेसु होजा, णो असंखेजेसु भागेसु होजा, णो सव्वलोए होजा । एवं जाव णियंठे ।
भावार्थ-१५२ प्रश्न-हे भगवन् ! पुलाक, लोक के संख्यातवें भाग में होते हैं, असंख्यातवें भाग में होते हैं, संख्यात भागों में होते हैं, असंख्यात भागों में होते हैं या सम्पूर्ण लोक में होते हैं ?
१५२ उत्तर- हे गौतम ! संख्यातवें भाग में नहीं होते, असंख्यातवें भाग में होते है । संख्यात भागों में, असंख्यात भागों में और सम्पूर्ण लोक में भी नहीं होते। इसी प्रकार यावत् निग्रंथ पर्यन्त ।
१५३.प्रश्न-सिणाए णं-पुच्छा।
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