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भगवती सूत्र शतक ३० में 'समवसरण' की प्ररूपणा है । क्रियावादी आदि चार प्रकार के समवसरण की अपेक्षा प्रश्नोत्तर है । यों तो चारों वादी मिथ्यादृष्टि के रूप में प्रसिद्ध हैं, किन्तु इस स्थान पर क्रियावादी को मुख्य रूप से सम्यग्दृष्टि आदि मान कर प्ररूपणा की गई है । अलेशी - लेश्या - रहित अयोगी-केवली और सिद्धों को भी क्रियावादी (पृ. ३६०१ उत्तर ४ ) और सम्यग्दृष्टि के लिये - " सम्मदिट्ठी जहा अलेस्सा, मिच्छादिट्ठी जहा कण्हपविखया" (पृ. ३६१० उत्तर ५ ) बताया है । इसके आगे उत्तर ६ में ज्ञानी यावत् केवलज्ञानी, अवेदक, अकषायी और अयोगी को भी अलेशी के समान क्रियावादी लिखा है । इससे स्पष्ट हो जाता है कि सम्यग्दृष्टि का क्रियावादी मान कर ही विचार किया गया है। आचारांग सूत्र श्रु १ अ. १ उ. १ सूत्र में भी ऐसा ही निरूपण हुआ है । इसका आशय यही है कि जो व्यक्ति और जो विचारधारा, आत्मा को कर्म का कर्ता - भोक्ता और आत्म-शुद्धि के योग्य ज्ञान- दर्शनादि क्रिया में श्रद्धा करे, वह क्रियावादी है । अतएव इस प्रकरण में क्रियावादी सम्बन्धी विधान सम्यग्दृष्टि विषयक समझ कर विचार किया जा रहा है ।
(१) समुच्चय जीव सम्बंधी प्रश्न के उत्तर (पृ. ३६१६ उत्तर १० ) में बताया है कि- "क्रियावादी जीव, नैरयिक और तिर्यंच आयु का बन्ध नहीं करते, मनुष्यायु और वायु का ही बन्ध करते हैं । यह ठीक है । क्योंकि नारक जीव, न तो पुन: नरकायु बाँध सकते हैं और न देवायु का ही बन्ध कर सकते हैं। वे मनुष्यायु और तिर्यंच आयु का ही बंध करते हैं । इसी प्रकार देव भी नरक और देवायु का बन्ध नहीं करते । इनके लिए. मनुष्य और तिर्यंच आयु का बन्ध ही शेष रहता है । जो क्रियावादी नारक और देव हैं, वे तियंचाय का बन्ध नहीं कर के एक मनुष्यायु का ही बन्ध करते हैं । इसलिये मनुष्यायु का विधान, देव और नारक जीवों की अपेक्षा हुआ है (पृ. ३६२३ उ. २३ - २५ और पू.. . ३६३१ का अंतिम उत्तर) और देवायु का विधान मनुष्य और तियंत्र की अपेक्षा से हुआ है। इसके आगे ग्यारहवें प्रश्न के उत्तर में बताया है कि देवायु भी भवनपति का नहीं, व्यंतर का नहीं और ज्योतिषी देवों का भी नहीं, एकमात्र वैमानिक देव का आयुष्य ही
है ।
(२) कृष्ण, नील और कापोत लेश्या वाले नैरयिक जीवों सम्बन्धी १४ वें प्रश्न के - उत्तर (पृ. ३६१७) में स्पष्ट लिखा है कि वे देव, नारक और तिर्यंच आयु का बन्ध नहीं कर के मात्र मनुष्यायु का ही बंध करते हैं । नारकों में ये तीन लेश्या ही है ।
समुच्चय तेजोलेशी क्रियावादी जीवों के लिये मनुष्य और देवायु का बन्ध ( पृष्ठ
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