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भगवती सूत्र - श २५ उ. ६ उवपसंद हान द्वार
११९ प्रश्न - नियंटे - पुच्छा | ११९ उत्तर - गोयमा सिणायं वा, अजमं वा उवसंपज्जइ ।
! णियंटत्तं जहइ, कसायकुसीलं वा,
भावार्थ- ११९ प्रश्न - हे भगवन् ! निग्रंथ, निग्रंथपन त्यागते हुए क्या छोड़ते हैं और किसे प्राप्त करते हैं ?
११९ उत्तर - हे गौतम! निग्रंथपन छोड़ते हैं और कषाय-कुशीलपन, स्नातकपन या असंयम प्राप्त करते हैं ।
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१२० प्रश्न - सिणाए - पुच्छा | १२० उत्तर - गोयमा ! सिणायत्तं
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जहह, सिद्धिगई उवसंपज्जइ २४ ।
भावार्थ - १२० प्रश्न - हे भगवन् ! स्नातक, स्नातकपन त्यागते हुए छोड़ते हैं और किसे प्राप्त करते हैं ?
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१२० उत्तर - हे गौतम! स्नातकपन छोड़ते हैं और सिद्धगति प्राप्त करते हैं ।
विवेचन - पुलाक, पुलाकपन छोड़ कर उसके समान संयम स्थानों के सद्भाव से कषाय- कुशलपन को प्राप्त होते हैं। इस प्रकार जिस संयत के जैसे संयम स्थान होते हैं, वह उसी भाव को प्राप्त होता है, किन्तु कषाय - कुशील अपने समान संयम- स्थानभूत पुलाकादि भावों को प्राप्त करते हैं और अविद्यमान समान संयम स्थान रूप निग्रंथ भाव को प्राप्त करते हैं । निर्ग्रन्थ, कषाय- कुशील या स्नातक भाव को प्राप्त करते हैं और स्नातक तो सिद्धगति ही प्राप्त करते हैं ।
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निर्ग्रन्थ, उपशमश्रेणी और क्षपकश्रेणी करते है । उपशमश्रेणी करने वाले निर्ग्रन्थ, श्रेणी से गिरते हुए कषाय- कुशीलपन प्राप्त करते हैं और श्रेणी के शिखर पर मर करं देव रूप से उत्पन्न होते हुए असंयत होते है, किन्तु संपतासंयत ( देशविरत ) नहीं होते । क्योंकि देवों में संयतासंयतपन नहीं होता । यद्यपि निग्रंथ श्रेणी से गिर कर संयतासंयत भी होते हैं, परन्तु उसका यहां कथन नहीं किया है । क्योंकि श्रेणी से गिर कर वे सीधे
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