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________________ ३४१८ भगवती सूत्र-श. २५ उ. ६ संज्ञा द्वार संयतासंयत नहीं होते, किन्तु कषाय-कुशील हो कर संयतासंयत होते हैं । स्नातक, स्नातकपन को छोड़ कर मोक्ष में ही जाते हैं। .. संज्ञा द्वार १२१ प्रश्न-पुलाए णं भंते ! किं सण्णोवउत्ते होजा, णो. सण्णोवउत्ते होज्जा ? १२१ उत्तर-गोयमा ! णोसण्णोवउत्ते होजा। . भावार्थ-१२१ प्रश्न-हे भगवन् ! पुलाक, संशोपयुक्त (आहारादि संज्ञायुक्त) होते हैं या नोसंज्ञोपयुक्त (आहारादि संज्ञा रहित) ? १२१ उत्तर-हे गौतम ! संज्ञोपयुक्त नहीं होते, नोसंज्ञोपयुक्त होते हैं। १२२ प्रश्न-बउसे णं भंते !-पुच्छा। " . १२२ उत्तर-गोयमा ! सण्णोवउत्ते वा होजा, णोसण्णो. वउत्ते वा होजा । एवं पडिसेवणाकुसीले वि, एवं कसायकुसीले वि । णियंठे सिणाए य जहा पुलाए २५। .. भावार्थ-१२२ प्रश्न-हे भगवन् ! बकुश, संज्ञोपयुक्त होते हैं या नोसं... ज्ञोपयुक्त? - १२२ उत्तर-हे गौतम ! संज्ञोपयुक्त भी होते हैं और नोसंज्ञोपयुक्त .भी। इसी प्रकार प्रतिसेवना-कुशील और कषाय-कुशील भी । निग्रंथ और . स्नातक पुलाक के समान नोसंज्ञोपयुक्त होते है। विवेचन-आहारादि संज्ञा में उपयुक्त अर्थात् आहारादि की अभिलाषा वाला 'संशोपयक्त' कहलाता है। आहारादि का उपभोग करने पर भी आहारादि के विषय में आसक्ति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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