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उत्पन्न होता है । वह कृत्रिम हो ही नहीं सकता । अतएव सिद्ध है कि जन्म नपुंसक भी सिद्ध हो सकता है यह भगवती सूत्र का अभिप्राय है ।
शंका -- स्थानांग सूत्र ३ - ४ तथा बृहत्कल्प सूत्र के चौथे उद्देशक में नपुंसक को दीक्षा देने का निषेध किया है। जब नपुंसक दीक्षित ही नहीं हो सकता, तो मुक्ति कैसे
प्राप्त कर सकता है ?
समाधान -- उपरोक्त निषेध अनतिशय ज्ञानियों के लिये है, किन्तु जो अतिशय ज्ञानी है, वे प्रव्रजित कर सकते हैं। जैसे कि भिक्षु प्रतिमा लगभग ३० वर्ष की दीक्षा पर्याय वाले और पूर्वधर आदि विशेषता वाले साधु ही स्वीकार कर सकते हैं । किन्तु भगवान् अरिष्टनेमिजी ने श्री गजसुकुमाल मुनि को दीक्षित होते ही भिक्षु की महाप्रतिमा की आराधना करने की अनुमति दे दी । इसी प्रकार नपुंसक वेदी को अतिशयज्ञानी दीक्षा दे सकते हैं और मुक्ति भी प्राप्त कर सकते हैं। इसमें किसी प्रकार को बाधा नहीं है ।
टीकाकार ने नपुंसक लिंग के विधान का अर्थ 'कृत्रिम नपुंसक' किया, यह भगवती सूत्र के इस विधान से बाधित होता है । अनन्तरोपपन्नक नपुंसकवेदी तो जन्म नपुंसक ही होता है, कृत्रिम नहीं और आगमों के मूलपाठों में तो कहीं कृत्रिम अकृत्रिम का उल्लेख ही नहीं है, 4 कृत्रिम नपुंसक ही मानने पर यह आगम-विधान खण्डित होता है, जो नहीं होना चाहिये !
वेद का उदय भी विचित्र प्रकार का होता है। कई तीव्रतर वेदोदय वाले होते हैं, तो कई मन्दत । वैमानिक देवों में प्रथम द्वितीय स्वर्ग की अपेक्षा तृतीय- चतुर्थ स्वर्ग में कम उदय । यों ऊपर-ऊपर के देवलोकों में क्रमशः कम होते-होते अनुत्तर विमानों में तो अत्यंत मंद होता है । यही बात मनुष्यों में भी है। कई पुरुष और स्त्रियाँ तीव्र वेदोदय वाले भी होते हैं और मन्द उदय वाले भी । प्रथम गुणस्थान स्थित गृहस्थ भी कोई मंद उदय वाले मिल सकते हैं और कई चतुर्थ गुणस्थानी भी तीव्र वेदोदयी होते हैं। जिनका वेदोदय मंद हो, वे क्रमशः देशविरत, सर्वाविरत एवं अप्रमत्तादि होते हुए कोई अवेदी भी हो सकते हैं । यह स्थिति तीनों वेदों में होती है । फिर पुरुष और स्त्री वेदी को तो अवेदी होना मानना और नपुंसक वेदी को नहीं मानना यह कैसे उचित हो सकता है ? और ऐसा मानना तो अनुचित ही होगा कि नपुंसकवेदी मन्दोदयी एवं अनुदयी हो ही नहीं सकता ।
शंका- निग्रंथों के प्रकरण में पुलाक निग्रंथ को 'पुरुष नपुंसकवेदी' बताया । इसका अर्थ ही यह है कि वह कृत्रिम नपुंसक है, अन्यथा केवल 'नपुंसकवेंदी' ही लिखा होता ?
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