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भगवती सूत्र - श. २५ उ. ६ सन्निकर्ष द्वार
५ असंख्यात गुण हीन- दोनों साधुओं में से दूसरे के जितने चारित्र-पर्याय हैं, उनको असंख्यात गुण किया जाय, तब वह पहले साधु के बराबर हो, तो उसका चारित्र असंख्यात गुण हीन कहलाता है ।
६ अनन्त गुण हीन - दो साधुओं में से दूसरे के जितने चारित्र-पर्याय हैं, उनको अनन्त गुण किया जाय, तब वह पहले साधु के बराबर हो, तो वह अनन्त गुण हीन कहलाता है । इसी प्रकार वृद्धि के भी षट्स्थान पतित का क्रम समझना चाहिये ।
सामायिक चारित्र के अनन्त पर्याय है । किसी के सामायिक चारित्र के अनन्त पर्याय अधिक है और किसी के कम हैं, परन्तु सभी सामायिक चारित्र के पालने वालों के अनन्त पर्याय हैं ही । इनको समझाने के लिये जिसके सामायिक चारित्र के सब से अधिक पर्याय हैं, वे भी हैं तो अनन्त ही और सभी आकाश - प्रदेशों से अनन्त गुण अधिक हैं । असत्कल्पना से उदाहरण के रूप में समझाने के लिये सब से अधिक संयम पर्याय वाले संयमी के अनन्त पर्यायों को दस हजार के रूप में मान लिया जाय । लोक में जीव भी अनन्त हैं, किन्तु असत् कल्पना से सभी जीवों को एक सौ मान लिया जाय । लोकाकाश के प्रदेश असंख्य हैं, उन्हें असत्कल्पना से पचास मान लिया जाय और उत्कृष्ट संख्यात राशि को असत्कल्पना से दस मान लिया जाय । जैसे कि सामायिक चारित्र के सब से अधिक पर्याय अनन्त हैं । असत्कल्पना से उन्हें १०००० मान लिया जाय । जीव अनन्त है, उन्हें असत्कल्पना से १०० मान लिया जाय । १ अनन्त भाग हीन- अब दस हजार में १०० का भाग दिया जाय, क्योंकि एक तो पूर्ण पर्याय वाला है और दूसरा अनन्तवां भाग हीन हैं । अतः १०००० में १०० का भाग देने पर लब्धांक १०० आते हैं अर्थात् १००००-१०० = ९९०० उसके चारित्र - पर्याय हैं । यह १०० पर्याय ( अनन्तवां भाग हीन) ही अनन्तवां भाग होता है । २ असंख्य भाग हीन - एक के तो पूर्ण अनन्त पर्याय हैं, जिन्हें असत्कल्पना से १०००० माना है । दूसरे के चारित्र पर्याय उससे असंख्यातवाँ भाग हीन हैं । असंख्यात को असत्कल्पना से '५० माना है । १०००० में ५० का भाग देने पर २०० आते हैं । इस प्रकार १००००-२००=९८०० पर्याय हैं । यह २०० पर्याय असंख्यातवां भाग हीन हैं ।
३ संख्यात भाग हीन - एक के तो पूर्ण पर्याय अनन्त हैं, जिन्हें असत् कल्पना से १०००० माना हैं, दूसरे के चारित्र पर्याय उससे संख्यातवां भाग हीन हैं । असत् कल्पना से संख्यात को १० माना है । १०००० में १० का भाग देने पर लब्धांक १००० आते हैं । अतः उसके १०००० में से १००० शेष निकालने पर ९००० पर्यव शेष रहते हैं । पहले से इसके एक हजार पर्यव ( संख्यात भाग) हीन हैं ।
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