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________________ ३३९४ भगवती सूत्र - श. २५ उ. ६ सन्निकर्ष द्वार करे करे जाव विसेमाहिया वा ? ८२ उत्तर - गोयमा ! १ पुलागस्स कसायकुसीलरस य एएसि जहणगा चरित्तपजवा दोण्ह वि तुल्ला सव्वत्थोवा । २ पुलागस्स उकोसगा चरित्तपज्जवा अनंतगुणा । ३ बउसस्स पडिसेवणाकुसीलस्स य एएसि णं जहणगा चरित्तपज्जवा दोण्ह वि तुल्ला अनंतगुणा । ४ बसस्स उक्कोसगा चरितपज्जवा अनंतगुणा । ५ पडिसेवणाकुसीलस्स उकोसगा चरित्तपज्जवा अनंतगुणा । ६ कसायकुसीलरस उक्कोसगा चरित्तपज्जवा अनंतगुणा । ७ णियंठस्स सिणायस्स य एएसि णं अजहण्णमणुकोसगा चरित्तपज्जवा दोन्ह वि तुल्ला अनंतगुणा १५ । भावार्थ - ८२ प्रश्न- हे भगवन् ! पुलाक, बकुश, प्रतिसेवना-कुशील, कषायकुशील, निग्रंथ और स्नातक के जघन्य और उत्कृष्ट चारित्र - पर्यायों से कौन किससे यावत् विशेषाधिक हैं ? ८२ उत्तर - हे गौतम! १-पुलाक और कषाय-कुशील के जघन्य चारित्रपर्याय परस्पर तुल्य हैं और सब से थोड़े हैं २-उनसे पुलाक के उत्कृष्ट चारित्रपर्याय अनन्त गुण हैं ३ - उनसे बकुश और प्रतिसेवना- कुशील के जघन्य चारित्रपर्याय अनन्त गुण हैं और परस्पर तुल्य हैं ४- उनसे बकुश के उत्कृष्ट चारित्रपर्याय अनन्त गुण हैं ५ - उनसे प्रतिसेवना कुशील के उत्कृष्ट चारित्र - पर्याय अनन्त गुण हैं ६ - उनसे कषाय- कुशील के उत्कृष्ट चारित्र पर्याय अनन्त गुण हैं ७- उनसे निग्रंथ और स्नातक, इन दोनों के अजघन्यानुत्कृष्ट चारित्र - पर्याय अनन्त गुण हैं और परस्पर तुल्य हैं । विवेचन चारित्र अर्थात् सर्वविरति रूप परिणाम के पर्यव अर्थात् भेद ( अंश ) 'चारित्र-पर्यव' कहलाते हैं । वे बुद्धिकृत या विषयकृत अविभाग परिच्छेद (जिनके फिर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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