SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 242
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • भगवती सूत्र-श. २५ उ. ६ सन्निकर्प द्वार ३३९३ सिणायस्म वि। भावार्थ-८० प्रश्न-हे भगवन ! निग्रंथ, दूसरे निग्रंथ के स्वस्थान सन्निकर्ष से चारित्र-पर्यायों से होन, तुल्य या अधिक है ? ८० उत्तर-हे गौतम ! हीन नहीं और अधिक भी नहीं हैं, तुल्य होते हैं। इसी प्रकार स्नातक के माथ भी जानना चाहिये। ८१ प्रश्न-सिणाए णं भंते ! पुलागस्स परट्ठाणसण्णिगासेणं० ? ८१ उत्तर-एवं जहा णियंठस्स वत्तव्वया तहा सिणायस्स वि भाणियव्वा । जाव प्रश्न-सिणाए णं भंते ! सिणायस्स सट्टाणसण्णिगासेणं-पुच्छा। उत्तर-गोयमा ! णो हीणे, तुल्ले, णो अब्भहिए । भावार्थ-८१ प्रश्न-हे भगवन् ! स्नातक, पुलाक के परस्थान सन्निकर्ष से चास्त्रि-पर्यायों से हीन, तुल्य या अधिक है ? . 1. ८१ उत्तर-हे गौतम ! जिस प्रकार निग्रंथ को वक्तव्यता कही, उसी प्रकार स्नातक की वक्तव्यता भी जाननी चाहिये । यावत् प्रश्न-हे भगवन् ! स्नातक, दूसरे स्नातक के स्वस्थान सन्निकर्ष से-- चारित्र-पर्यायों से हीन, तुल्य या अधिक है ? . उत्तर-हे गौतम ! हीन और अधिक नहीं, तुल्य है। ८२ प्रश्न-एएसि णं भंते ! पुलाग-बउस-पडिसेवणाकुसीलकसायकुसील-णियंठ-सिणायाणं जहण्णुकोसगाणं चरित्तपन्जवाणं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy