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________________ भगवती सूत्र - श. २५ उ. ६ सन्निकर्ष द्वार भाणियव्वा । कसायकुसीलस्स एस चेव बउसवत्तव्वया । णवरं पुला एवि समं छट्टाण्वडिए । ३३९२ भावार्थ - ७८ प्रश्न - हे भगवन् ! बकुश, निग्रंथ के परस्थान सन्निकर्ष से चारित्रपर्यायों से हीन तुल्य या अधिक होते हैं ? ७८ उत्तर - हे गौतम! हीन होते हैं, तुल्य और अधिक नहीं होते । अनन्त गुण हीन होते हैं। इसी प्रकार स्नातक की अपेक्षा भी जानना चाहिये । प्रतिसेवना-कुशील के लिये भी इसी प्रकार, बकुश की वक्तव्यता कहनी चाहिये । कषाय- कुशील के लिये भी यही बकुश की वक्तव्यता जाननी चाहिये, किन्तु पुलाक की अपेक्षा छह स्थान पतित कहना चाहिये । ७९ प्रश्न - नियंठे णं भंते ! पुलागस्स परट्ठाणसणिगासेणं चरित्तपजवेहिं - पुच्छा | ७९ उत्तर - गोयमा ! णो हीणे, णो तुल्ले, अंग्भहिए, अनंतगुणमन्भहिए, एवं जाव कसायकुसीलस्स । भावार्थ - ७९ प्रश्न - हे भगवन् ! निग्रंथ, पुलाक के परस्थान सन्निकर्ष से चारित्रपर्यायों से होन, तुल्य या अधिक होते हैं ? ७९ उत्तर - हे गौतम! हीन और तुल्य नहीं, किन्तु अधिक होते है । अनन्त गुण अधिक होते हैं । इस प्रकार यावत् कषाय-कुशील की अपेक्षा भी । ८० प्रश्न - णियंठे णं भंते ! नियंठस्सं सट्टाणसण्णिगासेणं पुच्छा । ८० उत्तर - गोयमा ! णो हीणे, तुल्ले, णो अन्भहिए | एवं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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