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________________ भगवती सूत्र-श. २५ उ. ६ सन्निकर्ष द्वार ____७६ प्रश्न-बउसे णं भंते ! बउसस्स सट्टाणसण्णिगासेणं चरित्तपजवेहि-पुच्छा। ७६ उत्तर-गोयमा ! सिय हीणे, मिय तुल्ले, सिय अभहिए। जह हीणे छट्ठाणवडिए। भावार्थ-७६ प्रश्न-हे भगवन् ! एक बकुश, दूसरे बकुश के रवस्थान सन्निकर्ष (सजातीय-पर्यायों) से हीन है, तुल्य है या अधिक है ? . - ७६ उत्तर-हे गौतम ! कदाचित् होन, कदाचित् तुल्य और कदाचित अधिक होता है । यवि हीन होता है, तो (यावत्) छह स्थान पतित होता है । ..७७ प्रश्न-बउसे गं भंते ! पडिसेवणाकुसीलस्स परट्टाणसण्णिगासेणं चरित्तपज्जवेहिं किं हीणे० ? ७७ उत्तर-छटाणवडिए, एवं कसायकुसीलरस वि। भावार्थ-७७ प्रश्न-हे भगवन् ! बकुश, प्रतिसेवना कुशील के परस्थान सन्निकर्ष से चारित्र-पर्यायों से हीन, तुल्य या अधिक है ? . ७७ उत्तर-हे गौतम ! छह स्थान पतित होते हैं। इसी प्रकार कषायकुशील की अपेक्षा भी जानना चाहिये। ७८ प्रश्न-बउसे णं भंते ! णियंठस्स परढाणसण्णिगासेणं चरित्तपनवेहिं-पुच्छा। . ........ __७८ उत्तर-गोयमा ! होणे, णो तुल्ले, णो अब्भहिए, अणंतगुणहीणे, एवं सिणायस्स वि । पडिसेवणाकुसीलस्स एवं चेव बउसवत्तव्वया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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