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भगवती गूत्र--स. २', उ ६ सन्निकर्ष हार
कषाय-कुशील, निग्रंथ और स्नातक के संयम-स्थानों में, किस के संयम-स्थान, किस के संयमस्थानों से अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ?
७१ उत्तर-हे गौतम ! निग्रंथ और स्नातक का संयम-स्थान, अजघन्यानुत्कृष्ट एक ही है और सब से अल्प है, उससे पुलाक के संयम-स्थान असंख्य गुण हैं, उनसे बकुश के संयम-स्थान असंख्य गुण हैं, उनसे प्रतिसेवना-कुशील के संयम-स्थान असंख्य गुण हैं, उनसे कषाय-कुशील के संयम-स्थान असंख्य गुण हैं।
___ विवेचन-संयम अर्थात् चारित्र, उसके स्थान अर्थात् शुद्धि की प्रकर्पता और अप्रकर्षताकृत भेद-'संयम-स्थान' कहलाता है। वे असंख्य होते हैं। उनमें प्रत्येक संयमस्थान के सर्व आकाश-प्रदेशों को सर्व आकाश-प्रदेशों से गुणा करने पर जितने अनन्तानन्त पर्याय (अंश) होते हैं, उतने एक संयम-स्थान के पर्याय होते हैं, ऐसे संयम-स्थान पुलाक के असंख्य होते हैं, क्योंकि चारित्र-मोहनीय का क्षयोपशम विचित्र होता है । इसी प्रकार यावत् कषाय-कुशील तक जानना चाहिये। निग्रंथ का संयम-स्थान तो एक ही होता है, क्योंकि कषाय का क्षय या उपशम एक ही प्रकार का होता है । अतः उसकी शुद्धि भी एक ही प्रकार की होती है । एक होने के कारण ही उसका संयम-स्थान अजघन्यानुत्कृष्ट होता हैं, क्योंकि जघन्य और उत्कृष्टता का सद्भाव बहुत में ही होता है । इसी प्रकार स्नातक का संयम-स्थान भी एक ही होता है । अतएव संयम-स्थानों के अल्प-बहुत्व में कहा है कि निग्रंथ और स्नातक का संयम-स्थान एक ही होने के कारण सब से अल्प है । पुलाक आदि के संयम-स्थान उक्त क्रम के अनुसार क्षयोपशम को विचित्रता के कारण असंख्य-असंख्य गुण होते हैं।
सन्निकर्ष द्वार
७२ प्रश्न-पुलागस्स णं भंते ! केवइया चरित्तपन्जवा पण्णता ?
७२ उत्तर-गोयमा ! अणंता चरित्तपजवा पण्णत्ता, एवं जाव सिणायस्स।
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