________________
भगवती सूत्र - श. २५ उ. ६ सन्निकर्ष द्वार
भावार्थ - ७२ प्रश्न - हे भगवन् ! पुलाक के चारित्र- पर्याय कितने होते हैं ? ७२ उत्तर - हें गौतम ! पुलाक के चारित्र- पर्याय अनन्त होते हैं । इसी प्रकार यावत् स्नातक पर्यन्त ।
७३ प्रश्न - पुलाए णं भंते ! पुलागस्स सट्टाणसणिगासेणं चरितप्रज्जवेहिं किं हीणे, तुल्ले, अव्भहिए ?
७३ उत्तर - गोयमा ! १ मिय हीणे २ मिय तुल्ले ३ सिय अन्भहिए ३ | जड़ ही अनंतभागहीणे वा असंखेज्जइभागहीणे वा, संखेज्जइभागहीणे वा, संखेज्जगुणहीणे वा. असंखेज्जगुणहीणे वा, अनंतगुणही वा । अह अन्भहिए अनंतभागम-भहिए वा, असं - खेज्जइभागमन्भहिए वा, संखेजड़भागमन्भहिए वा, संखेज्जगुणमन्भहिए वो, असंखेज्जगुणम भहिए वा, अनंतगुणमन्भहिए वा ।
३३८६
कठिन शब्दार्थ -- सट्टानसण्णिगासेणं - - स्वस्थानसन्निकर्ष - सजातीय चारित्र - पर्यायों का सन्निकर्ष - - परस्पर संयोजन ।
भावार्थ - ७३ प्रश्न - हे भगवन् ! एक पुलाक, दूसरे पुलाक के स्वस्थान सन्निकर्ष से चारित्र - पर्यायों से हीन है, तुल्य है, या अधिक है ?
७३ उत्तर - हे गौतम! कदाचित् हीन होता है, कदाचित् तुल्य और कदाचित अधिक होता है। यदि हीन होता है, तो अनन्त भाग हीन, असंख्य भाग हीन, संख्यात भाग हीन, संख्यात गुण हीन, असंख्यात गुण हीन, या अनन्त गुण हीन होता है । यदि अधिक होता है, तो अनन्त भाग अधिक, असंख्यात भाग अधिक संख्यात भाग अधिक, संख्यात गुण अधिक, असंख्यात गुण अधिक, या अनन्त गुण अधिक होता है ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org