SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 233
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३८४ भगवती सूत्र - श. २५ उ. ६ गति द्वार विराधना की अपेक्षा अन्यतर देवलोक में अर्थात् भवनपति आदि में उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार बकुश और प्रतिसेवना-कुशील भी । ६३ प्रश्न कसायकुसीले - पुच्छा | ६३ उत्तर - गोयमा ! अविराहणं पहुच इंदत्ताए वा उववज्जेज्जा जाव अहमिंदत्ताए वा उववज्जेज्जा, विराहणं पडुच्च अण्णयरेसु उववज्जेज्जा । भावार्थ - ६३ प्रश्न - हे भगवन् ! कषाय-कुशील इन्द्रपने उत्पन्न होते हैं ० ? ६३ उत्तर - हे गौतम! अविराधना की अपेक्षा इन्द्रपने यावत् अहमिन्द्रपने उत्पन्न होते हैं और विराधना की अपेक्षा वह अन्यतर ( भवनपति आदि ) देवों में उत्पन्न होते हैं । ६४ प्रश्न --नियंठे - पुच्छा | ६४ उत्तर -- गोयमा ! अविराहणं पडुच्च णो इंदत्ताए उववज्जेज्जा जाव णो लोगपालत्ताए उववज्जेज्जा, अहमिंदत्ताए उववज्जेज्जा । विराहणं पडुच्च अण्णयरेसु उववज्जेज्जा । भावार्थ - ६४ प्रश्न - हे भगवन् ! निग्रंथ इन्द्रपने उत्पन्न होते हैं० ? ६४ उत्तर - हे गौतम ! अविराधना की अपेक्षा इन्द्रपने यावत् लोकपालपने उत्पन्न नहीं होते, किन्तु अहमिन्द्रपने उत्पन्न होते हैं। विराधना की अपेक्षा भवनपति आदि में उत्पन्न होते हैं । ६५ प्रश्र - पुलायस्स णं भंते ! देवलोगेमु उववज्जमाणस्स Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy