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भगवती सूत्र - श. २५ उ. ६ गति द्वार
विराधना की अपेक्षा अन्यतर देवलोक में अर्थात् भवनपति आदि में उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार बकुश और प्रतिसेवना-कुशील भी ।
६३ प्रश्न कसायकुसीले - पुच्छा |
६३ उत्तर - गोयमा ! अविराहणं पहुच इंदत्ताए वा उववज्जेज्जा जाव अहमिंदत्ताए वा उववज्जेज्जा, विराहणं पडुच्च अण्णयरेसु उववज्जेज्जा ।
भावार्थ - ६३ प्रश्न - हे भगवन् ! कषाय-कुशील इन्द्रपने उत्पन्न होते हैं ० ? ६३ उत्तर - हे गौतम! अविराधना की अपेक्षा इन्द्रपने यावत् अहमिन्द्रपने उत्पन्न होते हैं और विराधना की अपेक्षा वह अन्यतर ( भवनपति आदि ) देवों में उत्पन्न होते हैं ।
६४ प्रश्न --नियंठे - पुच्छा |
६४ उत्तर -- गोयमा ! अविराहणं पडुच्च णो इंदत्ताए उववज्जेज्जा जाव णो लोगपालत्ताए उववज्जेज्जा, अहमिंदत्ताए उववज्जेज्जा । विराहणं पडुच्च अण्णयरेसु उववज्जेज्जा ।
भावार्थ - ६४ प्रश्न - हे भगवन् ! निग्रंथ इन्द्रपने उत्पन्न होते हैं० ? ६४ उत्तर - हे गौतम ! अविराधना की अपेक्षा इन्द्रपने यावत् लोकपालपने उत्पन्न नहीं होते, किन्तु अहमिन्द्रपने उत्पन्न होते हैं। विराधना की अपेक्षा भवनपति आदि में उत्पन्न होते हैं ।
६५ प्रश्र - पुलायस्स णं भंते ! देवलोगेमु उववज्जमाणस्स
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