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________________ भगवती सूत्र-श. २५ उ. ६ गति द्वार ३३८३ मणुकोसेणं अणुत्तरविमाणेसु उववज्जेजा। भावार्थ-६० प्रश्न-हे भगवन् ! निग्रंथ मर कर किस गति में जाते हैं ? ६० उत्तर-हे गौतम ! पूर्ववत्, यावत् वैमानिक में उत्पन्न होते हुए अजघन्यानुत्कृष्ट अनुत्तर विमान में उत्पन्न होते हैं। ६१ प्रश्न-सिणाए णं भंते ! कालगए समाणे किं (क) गई गच्छइ ? ६१ उत्तर-गोयमा ! सिद्धिगई गच्छइ । भावार्थ-६१ प्रश्न-हे भगवन् ! स्नातक मर कर किस गति में जाते हैं ? ६१ उत्तर-हे गौतम ! सिद्ध गति में हो जाते हैं। ६२ प्रश्न-पुलाए णं भंते ! देवेसु उववजमाणे किं इंदत्ताए उववज्जेजा, सामाणियत्ताए उववज्जेजा, तायत्तीसगत्ताए उववज्जेजा, लोगपालत्ताए उववज्जेजा, अहमिंदत्ताए वा उववज्जेज्जा ? ६२ उत्तर-गोयमा ! अविराहणं पडुच्च इंदत्ताए उववज्जेजा, सामाणियत्ताए उववज्जेजा, तायत्तीसगत्ताए उववज्जेजा, लोगपालताए उववज्जेज्जा, णो अहमिंदत्ताए उववजेजा । विराहणं पडुच्च अण्णयरेसु उववज्जेजा । एवं बउसे वि, एवं पडिसेवणाकुसीले वि । कठिन शब्दार्थ-तायत्तीसगत्ताए-त्रायस्त्रिशकपन से, अहमिदत्ताए-अहमिन्द्रपन से । भावार्थ-६२ प्रश्न-हे भगवन् ! पुलाक, देवों में उत्पन्न होते हुए, क्या इन्द्रपने, सामानिकदेव, त्रास्त्रिशक, लोकपाल या अहमिन्द्रपने उत्पन्न होते हैं ? ... ६२ उत्तर-हे गौतम ! अविराधना की अपेक्षा इन्द्र, सामानिकदेव, त्रास्त्रिशकदेव और लोकपालपने उत्पन्न होते हैं, किन्तु अहमिन्द्र नहीं होते । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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