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________________ भगवती सूत्र-श. २५ उ. ६ तीर्थ द्वार । बउसे वि, एवं पडिसेवणाकुसीले वि ।। भावार्थ-४२ प्रश्न-हे भगवन् ! पुलाक, तीर्थ में होते हैं या अतीर्थ में? ४२ उत्तर-हे गौतम ! तीर्थ में होते हैं, अतीर्थ में नहीं होते। इसी प्रकार बकुश और प्रतिसेवना कुशील भी । ४३ प्रश्न-कसायकुसीले-पुच्छा। ..४३ उत्तर-गोयमा ! तित्थे वा होजा, अतित्थे वा होजा। भावार्थ-४३ प्रश्न-हे भगवन् ! कषाय-कुशील, तीर्थ में होते हैं या अतीर्थ में ? ४३ उत्तर-हे गौतम ! तीर्थ में भी होते हैं और अतीर्थ में भी। ४४ प्रश्न-जइ अतित्थे होजा किं तित्थयरे होजा, पत्तेयबुद्धे होजा? ४४ उत्तर-गोयमा ! तित्थयरे वा होजा, पत्तेयबुद्धे वा होजा। एवं णियंठे वि, एवं सिणाए वि ८ । भावार्थ-४४ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि वे अतीर्थ में होते हैं, तो क्या तीर्थकर होते हैं या प्रत्येक-बुद्ध ? . ४४ उत्तर-हे गौतम ! वे तीर्थकर या प्रत्येक-बुद्ध होते हैं। इसी प्रकार निग्रंथ और स्नातक भी। विवेचन--छद्मस्थ अवस्था में तीर्थंकर कषाय-कुशोल होते हैं, इस अपेक्षा से यह कहा गया है कि कषाय-कुशील अतीर्थ में भी होते हैं, अथवा तीर्थ का विच्छेद हो जाने पर दूसरे साधु भी कषाय-कुशील होते हैं । इस अपेक्षा से यह समझना चाहिये कि कपायकुशील अतीर्थ में भी होते हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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