SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती सूत्र - श २५ उ. ६ श्रुत द्वार श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान अथवा आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और मन:पर्यय ज्ञान होते हैं और चार ज्ञान हो, तो आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और मन:पर्ययज्ञान होते हैं । इसी प्रकार निग्रंथ मी । ३७ प्रश्न - सिणाए - पुछा । ३७ उत्तर - गोयमा ! पगंमि केवलणाणे होजा । Jain Education International भावार्थ - ३७ प्रश्न - हे भगवन् ! स्नातक में ज्ञान कितने होते है ? ३७ उत्तर - हे गौतम! स्नातक में एक केवलज्ञान ही होता है । श्रुत द्वार ३३६९ - ३८ प्रश्न - पुलाए णं भंते ! केवइयं सुयं अहिजेज्जा ? ३८ उत्तर - गोयमा ! जहण्णेणं णवमस्स पुव्वस्स तइयं आयारवत्युं उकोसेणं णव पुव्वाई अहिज्जेज्जा । वस्तु तक और उत्कृष्ट सम्पूर्ण नौ पूर्व पढ़ते है । भावार्थ - ३८ प्रश्न - हे भगवन् ! पुलाक श्रुत कितना पढ़ते है ? ३८ उत्तर - हे गौतम! पुलाक जघन्य नौवें पूर्व की तीसरी आचार ३९ प्रश्न - उसे - पुच्छा । ३९ उत्तर - गोयमा ! जहणेणं अट्ठ पवयणमायाओ, उक्कोसेणं दस पुव्वाई अहिज्जेजा । एवं पडि सेवणाकुसीले वि । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy