________________
भगवती सूत्र-श. २५ उ. ६ ज्ञान द्वार
३३६७
-
पडिसेवए होजा। उत्तरगुणपडिसेवमाणे दसविहरस पञ्चपखाणस्स अण्णयरं पडिसेवेजा पडिसेवणाकुसीले जहा पुलाए ।
भावार्थ-३३ प्रश्न-हे भगवन् ! यदि बकुश प्रतिसेवी होते हैं, तो क्या मूलगुण प्रतिसेवी होते हैं या उत्तरगुण ?
___३३ उत्तर-हे गौतम ! मलगुणों के प्रतिसेवी नहीं होतें, उत्तरगुणों के प्रतिसेवी होते हैं। उत्तरगणों के प्रतिसेवी होते हैं, तो दस प्रकार के प्रत्याख्यान में से किसी एक प्रत्याख्यान के प्रतिसेवी होते हैं। प्रतिसेवना-कुशील का कयन पुलाक के समान है। ..
३४ प्रश्न-कसायकुसीले गं-पुच्छो।
३४ उत्तर-गोयमा ! णो पडिसेवए होजा, अपडिसेवए होजा। एवं णिग्गंथे वि, एवं सिणाए वि ६ । ___भावार्थ-३४ प्रश्न-हे भगवन् ! कषाय-कुशील प्रतिसेवी होते हैं ?
३४ उत्तर-हे गौतम ! प्रतिसेवी नहीं होते, किन्तु अप्रतिसेवी होते हैं। इसी प्रकार निग्रंथ और स्नातक भी।
.. विवेचन--संज्वलन कषाय के उदय से जो संयम विरुद्ध आचरण करता है, वह 'प्रतिसेवक' (संयम विराधक) कहलाता है और जो किसी भी प्रकार के दोषों का सेवन नहीं करता, वह 'अप्रतिसेवी' कहलाता है । 'प्राणातिपातादिविरमण व्रत' 'मूलगुण' कहलाते हैं
और अनागत, अतिक्रान्त, कोटिसहित इत्यादि दस प्रकार के प्रत्याख्यान एवं उपलक्षण से पिण्डविशुद्धयादि 'उत्तर गुण' कहलाते हैं । इनमें दोष लगाने वाला मुनि क्रमशः मूलगुणप्रतिसेवी और उत्तरगुण प्रतिसेवी कहलाता है ।
ज्ञान द्वार
. ३५ प्रश्न-पुलाए णं भंते ! कइसु णाणेसु होजा ?
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org