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________________ भगवती सूत्र - २५ उ. ६ कल्प द्वार २५ प्रश्न - कसायकुमीले गं - पुच्छा । २५ उत्तर - गोयमा ! जिणकप्पे वा होज्जा, थेरकप्पे वा होज्जा, पाईए वा होना । भावार्थ - २५ प्रश्न - हे भगवन् ! कषाय-कुशील जिनकल्प में होते हैं ? २५ उत्तर - हे गौतम ! जिनकल्प में भी होते हैं, स्थविरकल्प भी और कल्पातीत भी होते हैं । ३३६३ २६ प्रश्न - नियंठे णं- पुच्छा । २६ उत्तर : गोयमा ! णो जिणकप्पे होज्जा, णो थेरकप्पे होज्जा, कप्पाईए होजा । एवं सिणाए वि ४ । भावार्थ - २६ प्रश्न - हे भगवन् ! निग्रंथ जिनकल्प में होते हैं० ? २६. उत्तर - हे गौतम ! निग्रंथ जिनकल्प में या स्थविरकल्प में नहीं होते, किन्तु कल्पातीत होते हैं । इसी प्रकार स्नातक भी । Jain Education International विवेचन --- अचेलकल्प आदि दस कल्प हैं। उनका पालन करना जिनके लिये निश्चित् रूप से आवश्यक हो, उन मुनियों का कल्प 'स्थितकल्प' कहलाता हैं । जिन मुनियों के लिये इन दसकल्पों में से चार का पालन करना नियमित रूप से आवश्यक हो और छह का पालन ऐच्छिक हो, उनका कल्प 'अस्थितकल्प' कहलाता है। प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के साधु के लिये अचेलकल्प आदि दस कल्पों का पालन करना आवश्यक । इसलिये उनका कल्प 'स्थितकल्प' कहलाता है । मध्य के बावीस तीर्थंकरों के साधुओं के लिये दस कल्पों में से चार कल्पों का पालन नियमित होता है और छह का पालन करना उनके लिये नियमित रूप से आवश्यक नहीं होता । अतः उनका कल्प 'अस्थितकल्प' कहलाता है । पुलाक आदि सभी निर्ग्रथ स्थितकल्प और अस्थितकल्प- दोनों कल्पों में होते हैं । दूसरी अपेक्षा से कल्प के दो भेद भी किये हैं। यथा- जिनकल्प और स्थविरकल्प | इन दोनों कल्पों में जो नहीं हो, उसे 'कल्पातीत' कहते हैं । पुलाक तो केवल For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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