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________________ निगोद के भेद २८ प्रश्न - कह विहाणं भंते! णिओया पण्णत्ता ? २८ उत्तर - गोयमा ! दुविहा णिओया पण्णत्ता । तं जहां णिओयगा यणिओयगजीवा य । कठिन शब्दार्थ -- णिओया-- निगोद | भावार्थ - २८ प्रश्न - हे भगवन् ! निगोद कितने प्रकार के कहे हैं ? २८ उत्तर - हे गौतम! निगोद दो प्रकार के कहे हैं। यथा- निगोद और निगोद जीव । २९ प्रश्न - णिओया णं भंते ! कइविहा पण्णत्ता ? २९ उत्तर - गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - सुहुमणिओया य बायरणिओया य, एवं णिओया भाणियव्वा जहा जीवाभिगमे तव णिरवसेसं । भावार्थ - २९ प्रश्न - हे भगवन् ! निगोद कितने प्रकार के कहे हैं ? २९ उत्तर - हे गौतम ! निगोद दो प्रकार के कहे हैं । यथा - सूक्ष्मनिगोद और बादरनिगोद | जीवाभिगम सूत्र के अनुसार सम्पूर्ण कहना चाहिये । विवेचन - अनन्तकायिक जीवों के शरीर को 'निगोद' कहते हैं और अनन्तकायिक जीवों को 'निगोद के जीव' कहते हैं । चर्मचक्षुओं से जिनके असंख्य शरीर इकट्ठे होने पर दृष्टिगोचर हो सकें, वे 'बादर निगोद' कहे जाते हैं और जो कितने ही शरीर इकट्ठे होने पर भी चर्मचक्षुओं से दृष्टिगोचर न हों, उन्हें 'सूक्ष्म निगोद' कहते हैं । औदकादि नाम ३० प्रश्न - कड़ विहे णं भंते ! णामे पण्णत्ते ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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