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भगवती सूत्र - श. २५ उ ५ औदयिकादि नाम
३० उत्तर - गोयमा ! छब्बिहे णामे पण्णत्ते, तं जहा - १ उदइए जाव ६ णिवाइए |
प्रश्न - से किं तं उदइए णामे ?
उत्तर - उदइए णामे दुविहे पण्णत्ते, तं जहा - उदए य उदयणिफण्णे य एवं जहा सत्तरसमस पढमे उद्देसए भावो तहेव इह वि । णवरं इमं णामणाणत्तं, सेसं तहेव जाव सण्णिवाइए ।
| 'सेवं भंते! सेवं भंते !' ति ॥
|| पणवीसइमेस पंचमो उद्देसो समत्तो ॥
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भावार्थ - ३० प्रश्न - हे भगवन् ! नाम (भाव) कितने प्रकार के कहे हैं। ३० उत्तर - हे गौतम! नाम छह प्रकार के कहे हैं। यथा- औदयिक यावत् सान्निपातिक ।
प्रश्न- हे भगवन् ! औदयिक नाम कितने प्रकार का कहा है ?
उत्तर - हे गौतम! औदयिक नाम दो प्रकार का कहा है । यथा-उदय और उदयनिष्पन्न । सत्रहवें शतक के प्रथम उद्देशकानुसार । किन्तु वहां भाव के विषय में कहा है और यहां नाम के विषय में यावत् सान्निपातिक पर्यंत । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । भगवन् ! यह इसी प्रकार है'कह कर गौतस्वामी यावत् विचरते हैं ।
विवेचन - नाम परिणाम और भाव, ये के प्रथम उद्देशक में 'भाव' की अपेक्षा औदयिक 'नाम' शब्द की अपेक्षा यह कथन किया है ।
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सभी शब्द एकार्थक हैं । सत्रहवें शतक आदि का कथन किया था और यहां पर
॥ पच्चीसवें शतक का पाँचवाँ उद्देशक सम्पूर्ण ॥
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