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भगवती सूत्र-श. २५ उ. ५ आवलिका यावत् पुद्गल-परिवर्तन के समय
३३४.७
नहीं, किन्तु अनागताद्धा काल से सर्वाद्धा कुछ न्यून दुगुना है और अनागताद्धा काल सर्वाद्धा से सातिरेक (कुछ अधिक) अर्द्ध है।
विवेचन-समय से ले कर शीर्षप्रहेलिका तक ४६ भेद हैं। यहाँ तक का काल परिमाण, गणित के योग्य है। शीर्षप्रहेलिका में १९४ अंकों की संख्या आती है । इसके आगे भी काल परिमाण बताया गया है, परन्तु वह उपमा का विषय है, गणित का नहीं । समय से ले कर शीर्षप्रहेलिका तक की संख्या का अर्थ पहले लिखा जा चुका है। इसी प्रकार उपमा के विषयभूत पल्योपम, सागरोपम आदि का अर्थ भी पहले लिखा जा चुका है।
भूतकाल से भविष्यत्काल एक समय अधिक है, क्योंकि भूतकाल और भविष्यत्काल अनादि और अनन्तपन की अपेक्षा दोनों समान हैं । इसके बीच में गौतमस्वामी के प्रश्न का समय है । वह अविनष्ट होने से भूतकाल में समाविष्ट नहीं किया जा सकता, किंतु अविनष्ट धर्म की साधर्म्यता से उसका समावेश भविष्यत्काल में होता हैं । इसलिये भविष्यत्काल, भूतकाल से एक समय अधिक है और भूतकाल, भविष्यत्काल से एक समय कम है।
__सर्वाद्धा अर्थात् सर्वकाल, अतीतकाल से एक समय अधिक दुगुना है और अतीतकाल, सर्वाद्धा काल से एक समय कम अर्द्ध भाग रूप है । यहाँ कोई आचार्य कहते हैं कि भूतकाल से भविष्यत्काल अनन्त गुण हैं । जैसा कि कहा है-'ते णतातीअद्धा अणागयद्धा अणंतगुणा' अर्थात् अनन्त पुद्गल परावर्तन रूप अतीताद्धा (भूतकाल) है। उससे अनन्त गुण अनागताद्धा (मविष्यत्काल) है । यदि वर्तमान समय में भूतकाल और भविष्यत्काल बराबर हों, तो वर्तमान समय व्यतीत हो जाने पर भविष्यत्काल एक समय कम हो जायगा और इसके बाद दो, तीन, चार इत्यादि समय कम होने पर भूतकाल और भविष्यत्काल का समानपना नहीं रहेगा। इसलिये ये दोनों काल समान नहीं है, परन्तु भूतकाल से भविष्यत्काल अनन्त गुण है । इसलिये अनन्त काल बीत जाने पर भी उसका क्षय नहीं होता है ।
___ इस शंका का समाधान यह है कि भूतकाल और भविष्यत्काल की जो समानता बताई जाती है, वह अनादिपन और अनन्तपन की अपेक्षा से है अर्थात् जिस प्रकार भूतकाल की आदि नहीं है, वह अनादि है, इसी प्रकार भविष्यत्काल का भी अन्त नहीं है, वह भी अनन्त है । इस प्रकार अनादि और अनन्तता की अपेक्षा भूतकाल और भविष्यत्काल की समानता बताई है।
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