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________________ भगवती सूत्र--श. २५ उ. ४ पुद्गल सकम्प-निष्कम्प ३३१९ १०२ प्रश्न-दुपएसिए णं भंते ! खंधे-पुच्छा। १०२ उत्तर-गोयमा ! सिय देसेए, सिय सम्वेए, सिय गिरेए । एवं जाव अणंतपएसिए। भावार्थ-१०२ प्रश्न-हे भगवन् ! द्विप्रदेशी स्कन्ध ? १०२ उत्तर-हे गौतम ! कदाचित् देश कम्पक, कदाचित् सर्व कम्पक और कदाचित् निष्कम्पक होता है । इस प्रकार यावत् अनन्त प्रदेशी स्कन्ध पर्यत । १०३ प्रश्न-परमाणुपोग्गला णं भंते ! किं देसेया, सव्वेया, णिरेया ? १०३ उत्तर-गोयमा ! णो देसेया, सव्वेया वि, णिरेया वि । भावार्थ-१०३ प्रश्न-हे भगवन् ! परमाण-पुद्गल (बहुत) देश कम्पक, सर्व कम्पक या निष्कम्पक होते है ? १०३ उत्तर-हे गौतम ! देश कम्पक नहीं होते, वे सर्व कम्पक भौ होते हैं और निष्कम्पक भी। १०४ प्रश्न-दुपएसिया णं भंते ! खंधा-पुच्छा। १०४ उत्तर-गोयमा ! देसेया वि, सव्वेया वि, णिरेया वि। एवं जाव अणंतपएसिया। भावार्थ-१०४ प्रश्न-हे भगवन् ! विप्रवेशी स्कन्ध ? १०४ उत्तर-हे गौतम ! देश कम्पक भी होते हैं, सर्व कम्पक भी होते हैं और निष्कम्पक भी होते हैं । इस प्रकार यावत् अनन्त प्रवेशी स्कन्ध पर्यंत । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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