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भगवती सूत्र-ग. २५ उ. ४ परमाणु आदि सार्द्ध है या अनर्द्ध
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८३ उत्तर-गोयमा ! ओघादेसेणं सिय कडजुम्मा जाव सिय कलिओगा ४ । विहाणादेसेणं कडजुम्मा वि, जाव कलिओगा वि । एवं मउय-गरुय-लहुयो वि भाणियव्वा । सीय-उसिण-णिद्ध लुक्खा जहा वण्णा ।
भावार्थ-८३ प्रश्न-हे भगवन् ! अनन्त प्रदेशी स्कन्ध (बहुत) कर्कश स्पर्श के पर्यापों की अपेक्षा कृतयुग्मादि है ?
८३ उत्तर-हे गौतम ! ओघादेश से कदाचित् कतयुग्म यावत् कल्योज हैं । विधानादेश से कृतयुग्म भी हैं यावत् कल्योज भी हैं। इस प्रकार मृदु, गुरू
और लघु के विषय में भी जानना चाहिये । शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्शों का कथन भी वर्गों के समान है।
विवेचन-परमाणु-पुद्गल अनन्त होने पर भी उनमें संघात और भेद के कारण अनवस्थित स्वरूप होने से वे ओघादेश से कृतयुग्मादि होते हैं। विधानादेश से अर्थात् प्रत्येक की अपेक्षा तो वे कल्योज ही होते है। इसी प्रकार आगे के सूत्रों में भी कृतयुग्मादि संख्या को स्वयमेव घटित कर लेना चाहिये।
___ कर्कश स्पर्श के अधिकार में जो अनन्त प्रदेशी स्कन्ध के विषय में ही प्रश्न किया, इसका कारण यह है कि बादर अनन्त प्रदेशी स्कन्ध ही कर्कश आदि चार स्पर्श वाला होता है, परमाणु आदि नहीं । शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्श के विषय में जो वर्ण का अतिदेश किया है इसका कारण यह है कि परमाणु आदि भी शीत स्पर्शादि वाले होते हैं ।
ARRRRRपरमाणु आदि सार्द्ध है या अनर्द्ध ८४ प्रश्न-परमाणुपोग्गले णं भंते ! किं सड्ढे अणड्ढे ? ८४ उत्तर-गोयमा ! णो सड्ढे, अणड्ढे ।
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