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________________ भगवती सूत्र - श. २५ उ. ४ पुद्गल और युग्म उनसे संख्यात गुण कर्कश पुद्गल, प्रदेशार्थ से संख्यात गुण हैं। उनसे असंख्यात गुणकर्कश पुद्गल, द्रव्यार्थ से असंख्यात गुण हैं। उनसे असंख्यात गुण कर्कश पुद्गल, प्रदेशार्थ से असंख्यात गुण हैं। उनसे अनन्त गुण कर्कश पुद्गल, द्रव्यार्थ से अनन्त गुण हैं। उनसे अनन्त गुण कर्कश पुद्गल, प्रदेशार्थ से अनन्त गुण हैं । इसी प्रकार मृदु, गुरु और लघु स्पर्श भी । शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्शो का अल्प- बहुत्व वर्णों के अल्पबहुत्व के समान है । विबेचन- प्रदेशार्थता के प्रकरण में परमाणु के लिये जो 'अप्रदेशार्थता' कहीं है, इसका कारण यह है कि परमाणु के प्रदेश नहीं होते, इसलिये अप्रदेशार्थ रूप से अनन्त गुण कहा है । द्रव्य की विवक्षा में परमाणु द्रव्य है, और प्रदेश की विवक्षा में उसके प्रदेश नहीं होने से अप्रदेश है । इस प्रकार परमाणु की द्रव्यार्थ - अप्रदेशार्थता कही है । क्षेत्राधिकार में क्षेत्र की प्रधानता है । इसलिये परमाणु, द्विप्रदेशी स्कन्ध से ले कर अनन्त प्रदेशी स्कन्ध भी किसी विवक्षित एक क्षेत्रावगाढ़ होते हैं । वहाँ आधार और आधेय में अभेद की वित्रक्षा करने से वे एक प्रदेशावगाढ़ कहे जाते हैं । इसलिये एक प्रदेशावगाढ़ पुद्गल द्रव्यार्थ से सब से थोड़े हैं, क्योंकि वे लोकाकाश के प्रदेश प्रमाण ही हैं । कोई भी ऐसा आकाश प्रदेश नहीं है, जो एक प्रदेशावगाही परमाणु आदि को अवकाश देने रूप परिणाम से परिणत न हो। इसी प्रकार आगे संख्यात प्रदेशावगाढ़ आदि पुद्गलों के विषय में भी विचारना करना चाहिये । (79362JJ00000T Jain Education International पुद्गल और युग्म तेओए, दावरजुम्मे, कलिओगे ? ३२१७ ➡mri i Marr ५९ प्रश्न - परमाणुपोग्गले णं भंते! दव्वट्टयाए किं कडजुम्मे, For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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