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________________ ३२९२ भगवती सूत्र-श. २५ उ. ४ परमाणु आदि का अल्प-बहुत्व से ले कर अनन्त अणु स्कन्ध तक द्विप्रदेशावगाढ़ होते हैं । इस प्रकार त्रिप्रदेशी स्कन्ध से ले कर अनन्त प्रदेशी स्कन्ध तक त्रिप्रदेशावगाढ़ होते हैं । इस प्रकार चतुष्प्रदेशावगाढ़ यावत् असंख्य प्रदेशावगाढ़ स्कन्ध तक जानना चाहिये । ५४ प्रश्न-एएसि णं भंते ! परमाणुपोग्गलाणं, संखेजपएसियाणं, असंखेजपएसियाणं, अणंतपएसियाण य खंधाणं दवट्ठयाए पएसट्टयाए दव्वट्ठपएसट्टयाए कयरे कयरे० जाव विसेसाहिया वा ? . ५४ उत्तर-गोयमा ! सव्वत्थोवा अणंतपएसिया बंधा दव्वट्ठयाए, परमाणुपोग्गला दब्वट्टयाए अणंतगुणा, संखेजपएसिया खंधा दवट्ठः याए संखेनगुणा, असंखेजपएसिया खंधा दवट्ठयाए असंखेनगुणा, पएसट्टयाए-सव्वत्थोवा अणंतपएसिया खंधा पएसट्टयाए, परमाणुपोग्गला अपएसट्टयाए अणंतगुणा, संखेजपएसिया खंधा पएसट्टयाए संखेजगुणा, असंखेजपएसिया बंधा पपसट्टयाए असंखेज्जगुणा, दव्वट्ठपएमट्टयाए-सब्वत्थोवा अणंतपएसिया खंधा दवट्ठयाए, ते चेव पएसट्टयाए अणंतगुणा, परमाणुपोग्गला दब्वटुपएसट्टयाए अणंतगुणा, संखेजपएसिया खंधा दव्वट्टयाए संखेजगुणा, ते चेव पएसट्टयाए संखेजगुणा, असंखेजपएसिया बंधा दवट्ठयाए असंखेजगुणा, ते चेव पएसट्टयाए असंखेजगुणा । भावार्थ-५४ प्रश्न-हे भगवन् ! परमाणु-पुद्गल, संख्यात प्रदेशी, असंख्यात प्रदेशी और अनन्त प्रदेशी स्कन्धों में द्रव्यार्थ, प्रदेशार्थ और द्रव्यार्थ प्रदेशार्थ से कौन-से पुद्गल-स्कन्ध, किन पुद्गल-स्कन्धों से यावत् विशेषाधिक हैं ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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