________________
भगवती सूत्र-श. २५ उ. ४ परमाणु आदि का अल्प-बहुत्व
३२९१
याए । सव्वत्थ पुच्छा भाणियबा । जहा कक्खडा एवं मध्य-गरुयलहु या वि । सीय-उसिण-णिद्ध लुक्खा जहा वण्णा ।
कठिन शब्दार्थ-कक्खडा-कर्कश, लहुया-लघु, णिद्ध-स्निग्ध ।
भावार्थ-५३ प्रश्न-हे भगवन् ! एक गुण कर्कश और द्वि गुण कर्कश पुद्गलों में द्रव्यार्थ से कौन-किससे यावत् विशेषाधिक हैं ?
५३ उत्तर-हे गौतम! एक गुण कर्कश पुद्गलों से द्वि गुण कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ से विशेषाधिक हैं । इसी प्रकार यावत् नव गुण कर्कश पुद्गलों से दस गुण कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ से विशेषाधिक हैं । दस गुण कर्कश पुद्गलों से संख्यात गुण कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ से बहुत हैं । संख्यात गुण कर्कश पुद्गलों से असंख्यात गुण कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ से बहुत हैं । असंख्यात गुण कर्कश पुद्गलों से अनन्त गुण कर्कश पुद्गल द्रव्यार्थ से बहुत हैं । इसी प्रकार प्रदेशार्थ से भी हैं। सर्वत्र प्रश्न करना चाहिये । कर्कश स्पर्श के अनुसार मृदु (कोमल), गुरु (भारी) और लघु (हलका) स्पर्श भी समझना चाहिये । शीत (ठण्डा) उष्ण (गर्म) स्निग्ध (चिकना) और रूक्ष (रुखा-लूखा) स्पर्श, वर्ण के समान हैं।
. विवेचन-द्वयणुकों से परमाणु सूक्ष्म तथा एकत्व होने के कारण बहुत हैं और द्वि प्रदेशी स्कन्ध परमाणुओं से स्थूल होने से अल्प हैं । इसी प्रकार आगे-आगे के सूत्रों के विषय में भी जानना चाहिये । पूर्व-पूर्व की संख्या बहुत है और पीछे की संख्या अल्प है । दस प्रदेशिक स्कन्धों से संख्यात प्रदेशी स्कन्ध बहुत है, क्योंकि संख्यात के स्थान बहुत हैं । संख्यात-प्रदेशी स्कन्धों से असंख्यात प्रदेशी स्कन्ध बहुत हैं, क्योंकि संख्यात प्रदेशी स्कन्धों की अपेक्षा असंख्यात के स्थान बहुत हैं, परन्तु असंख्यात-प्रदेशी स्कन्धों से अनन्त प्रदेशी स्कन्ध अल्प हैं, क्योंकि उनका तथाविध सूक्ष्म परिणाम होता है ।
प्रदेशार्थ से विचार करते हुए बताया गया है कि परमाणुओं से द्विप्रदेशी स्कन्ध बहुत हैं । जैसे कल्पना की जाय कि द्रव्य रूप से सौ परमाणु और द्विप्रदेशी स्कन्ध साठ हैं, तो प्रदेशार्थ से परमाणु तो सौ ही है, परन्तु द्वयणुक १२० हैं । इस प्रकार ये बहुत हैं । यही विचारणा आगे भी समझनी चाहिये।
परमाणु से ले कर अनन्त प्रदेशी स्कन्ध तक एक प्रदेशावगाढ़ होते हैं और द्वयणुक
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org