SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 129
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२८० भगवती सूत्र-श. २५ उ. ४ सकम्प-निष्कम्प वे कृतयुग्म राशि रूप ही होते हैं । केवलज्ञान के पर्याय अविभागपलिच्छेद (अविभाज्य अंश) रूप होते हैं, इसलिये वे एक ही प्रकार के होते हैं। उनमें विशेषता नहीं होती। ३४ प्रश्न-कइ णं भंते ! सरीरगा पण्णता ? ३४ उत्तर-गोयमा ! पंच सरीरगा पण्णत्ता, तं जहा-ओरालिए, जाव कम्मए । एत्थ सरीरगपयं णिरवसेसं भाणियव्वं जहा. पष्णवणाए । भावार्थ-३४ प्रश्न-हे भगवन् ! शरीर कितने कहे हैं ? ३४ उत्तर-हे गौतम ! शरीर पांच कहे हैं। यथा-औदारिक-शरीर यावत् कार्मण-शरीर । यहां प्रज्ञापना सूत्र का बारहवां शरीर-पद सम्पूर्ण जानना चाहिये। - MARRIME सकम्प निष्कंप ३५ प्रश्न-जीवा णं भंते ! किं सेया णिरेया ? ३५ उत्तर-गोयमा ! जीवा सेया वि, णिरेया वि। प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-'जीवा सेया वि णिरेया वि' ? उत्तर-गोयमा ! जीवा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-संसारसमा. वण्णगा य असंसारसमावण्णगा य । तत्थ णं जे ते असंसारसमा. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy