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________________ भी ?' भगवती सूत्र - श. २५ उ. ४ सकम्प - निष्कम्प वण्णगा ते णं सिद्धा । सिद्धा णं दुविहा पण्णत्ता, तं जहा - अनंतरसिद्धा य परंपरसिद्धा य । तत्थ णं जे ते परंपरसिद्धा ते णं णिरेया, तत्थ णं जे ते अनंतर सिद्धा ते णं सेया । ३२८१ Jain Education International कठिन शब्दार्थ- सेया- सैज - कम्पन सहित, णिरेया- निरेज- कम्पन रहित । भावार्थ- - ३५ प्रश्न - हे भगवन् ! जीव सकम्प हैं या निष्कम्प ? ३५ उत्तर - हे गौतम! जीव सकम्प भी हैं और निकम्प भी । प्रश्न - हे भगवन् ! क्या कारण है कि 'जीव सकम्प भी हैं और निष्कम्प उत्तर - हे गौतम! जीव दो प्रकार के कहे हैं- १ संसारसमापन्नक और २ असंसार समापन - ( मुक्त ) । असंसार समापन्नक सिद्ध दो प्रकार के कहे हैं१ अनन्तर सिद्ध और २ परम्पर सिद्ध । जो परम्पर सिद्ध हैं, वे निष्कम्प हैं और जो अनन्तर - सिद्ध हैं, वे सकम्प हैं । ३६ प्रश्न - ते णं भंते! किं देसेया सव्वेया ? ३६ उत्तर - गोयमा ! णो देसेया, सव्वेया । तत्थ णं जे ते संसारसमावण्णगा ते दुविहा पण्णत्ता, तं जहा सेलेसि पडिवण्णगा य असेले सिपडिवण्णगाय । तत्थ णं जे ते सेलेसिपडिवण्णगा ते णं णिरेया, तत्थ णं जे ते अमेलेसिपडिवण्णगा ते णं सेया । प्रश्न- ते णं भंते ! किं देसेया सव्वेया ? उत्तर - गोयमा ! देसेया वि, सव्वेया वि, से तेणट्टेणं जाव णिरेया वि ? For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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