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भगवती सूत्र-श. २५ उ. ४ द्रव्यादि की अपेक्षा युग्म प्ररूपणा
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३३ उत्तर-जहा आभिणिबोहियणाणपज्जवेहिं तहेव दो दंडगा। एवं सुयण्णाणपज्जवेहि वि, एवं विभंगणाणपज्जवेहि वि । चवखुदंसणअचक्खुदंसण-ओहिदंसणपज्जवेहि वि एवं चेव, णवरं जस्स जं अत्थि तं भाणियव्वं । केवलदसणपज्जवेहिं जहा केवलणाणपज्जवेहिं ।
भावार्थ-३३ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव मतिअज्ञान के पर्यायों की अपेक्षा कृतयुग्म है ?
३३ उत्तर-हे गौतम ! आभिनिबोधिक ज्ञान के पर्यायों के दो दण्डक के अनुसार । श्रुतअज्ञान, विभंगज्ञान, चक्षुदर्शन, अचक्षदर्शन और अवधिदर्शन के पर्याय भी इसी प्रकार हैं, किन्तु श्रुतअज्ञानादि में से जिसके जो हो, उसके वह जानना चाहिये । केवलपर्शन के पर्याय, केवल ज्ञान के पर्याय के समान हैं।
विवेचन-जीव-प्रदेश अमूर्त होते हैं । इसलिये उनके कालादि वर्ण के पर्याय नहीं होते, परन्तु शरोर-विशिष्ट जीव का ग्रहण होने से शरीर के वर्ण की अपेक्षा कम से कृतयुग्मादि चारों प्रकार की राशि का व्यवहार हो सकता है । यहाँ सिद्ध जीव के विषय में प्रश्न का जो निषेध किया है, इसका कारण यह है कि सिद्ध भगवान् अमूर्त हैं । इसलिये उनमें वर्णादि नहीं होते।
आवरण के क्षयोपशम की विचित्रता से आभिनिबोधिक ज्ञान की विशेषताओं को और उसके सूक्ष्म अविभाज्य अंशों को 'आभिनिबो ध ज्ञान के पर्याय' कहते हैं । वे अनन्त हैं, परन्तु क्षयोपशम की विचित्रता के कारण उनका अनन्तपना अवस्थित नहीं हैं । इसलिये भिन्न-भिन्न समय की अपेक्षा वे चारों राशि रूप होते हैं। एकेन्द्रिय जीव में सम्यवत्व न होने से आभिनिबोधिक ज्ञान नहीं होता, इसलिये एकेन्द्रिय के अतिरिक्त दूसरे जीवों का कथन किया है।
___ सभी जीवों की अपेक्षा, सभी आभिनिबोधिक ज्ञान के पर्यायों को एकत्रित किया जाय, तो सामान्यादेश से भिन्न-भिन्न काल की अपेक्षा वे चारों राशि रूप होते हैं, क्योंकि क्षयोपशम की विचित्रता से उसके पर्याय अनवस्थित अनन्त होते है । विशेषावेश से एक काल में भी चारों राशि रूप होते हैं । केवलज्ञान के पर्यायों का अनन्तपन अवस्थित होने से
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