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________________ ३२७२ भगवती सूत्र- श. २५ उ. ४ द्रव्यादि की अपेक्षा युग्म प्ररूपणा जीव, द्रव्य रूप से अनन्त अवस्थित होने से कृतयुग्म हैं और विधानादेश से अर्थात् प्रत्येक की अपेक्षा वे कल्योज हैं। जीव-प्रदेशों की अपेक्षा समस्त जीवों के प्रदेश अवस्थित अनन्त होने से और प्रत्येक जीव के प्रदेश अवस्थित असंख्यात होने से चार-चार का अपहार करते हुए अन्त में चार शेष रहते हैं । अतः कृतयुग्म होते हैं। शरीर-प्रदेशों की अपेक्षा-सामान्य से सभी जीवों के शरीर-प्रदेश संघात और भेद से अनवस्थित अनन्त होने से भिन्न-भिन्न समय में उनमें कृतयुग्मादि चार राशि बन सकती है। विशेष में प्रत्येक जीव, शरीर के प्रदेशों में एक समय में भी चारों राशि पाई जा सकती है, क्योंकि किस' जीव-गरीर के प्रदेश कृतयुग्म होते हैं, तो किसी अन्य जीव-शरीर के प्रदेश न्योजादि राशि रूप होते हैं। इस . प्रकार चारों राशि पाई जाती हैं। २० प्रश्न-जीवे णं भंते ! किं कडजुम्मपएसोगाढे-पुच्छा। __२० उत्तर-गोयमा ! सिय कडजुम्मपएसोगाढे जाव सिय कलिओगपएसोगाढे । एवं जाव सिद्धे । भावार्थ-२० प्रश्न-हे भगवन् ! जीव कृतयुग्म प्रदेशावगाढ़ है. ? २० उत्तर-हे गौतम ! कदाचित् कृतयुग्म प्रदेशावगाढ़ यावत् कल्योज प्रदेशावगाढ़ होता है, यावत् सिद्ध पर्यन्त। २१ प्रश्न-जीवा णं भंते ! किं कडजुम्मपएसोगाढा-पुच्छा । २१ उत्तर-गोयमा ! ओघादेसेणं कडजुम्मपएसोगाढा, णो तेओग०, णो दावर०, णो कलिओग० । विहाणादेसेणं कडजुम्मपए. सोगाढा वि जाव कलिओगपएसोगाढा वि । भावार्थ-२१ प्रश्न-हे भगवन् ! जीव (बहुत जीव) कृतयुग्म प्रदेशावगाढ़ है. ? २१ उत्तर-हे गौतम ! ओघादेश से कृतयुग्म प्रदेशावगाढ़ हैं, किन्तु Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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