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________________ भगवती सूत्र - श. २५ उ. ४ द्रव्यादि की अपेक्षा युग्म प्ररूपणा i धर्मास्तिकाय लोकाकाश प्रमाण है । इसलिये वह लोकाकाश के असंख्यात प्रदेशों में अवगाढ़ है । लोक के अमख्यात प्रदेश अवस्थित होने से उनमें कृतयुग्मता है । धर्मास्तिकाय भी लोक प्रमाण होने मे उसमें भी कृतयुग्मता है। इस प्रकार सभी अस्तिकाय लोक प्रमाण होने से उनमें कृतयुग्मता है किन्तु आकाशास्तिकाय के अवस्थित अनन्त प्रदेश होने से तथा आत्मावगाही होने से कृतयुग्म प्रदेशावगाढ़ता है और अद्धासमय अवस्थित असंख्येय प्रदेशात्मक मनुष्य क्षत्रावगाही होने मे कृतयुग्म प्रदेशावगाढ़ता है । ३२६६ १४ प्रश्न - जीवे णं भंते ! दव्वट्टयाए किं कडजुम्मे - पुच्छा । १४ उत्तर - गोयमा ! णो कडजुम्मे, णो तेओगे, णो दावरजुम्मे, कलिओए | एवं रइए वि, एवं जाव सिद्धे । भावार्थ - १४ प्रश्न - हे भगवन् ! जीव द्रव्यार्थ से कृतयुग्म है० ? १४ उत्तर - हे गौतम! कृतयुग्म, ज्योज या द्वापरयुग्म नहीं, परन्तु कल्योज है । इस प्रकार नैरयिक यावत् सिद्ध पर्यंत । १५ प्रश्न - जीवा णं भंते ! दव्वट्टयाए किं कडजुम्मा-पुच्छा । १५ उत्तर - गोयमा ! ओघादेसेणं कडजुम्मा, णो तेओगा, जो दावरजुम्मा, णो कलिओगा । विहाणादेसेणं णो कडजुम्मा, णो ओगा, गोदावरजुम्मा, कलिओगा । । भावार्थ - १५ प्रश्न - हे भगवन् ! जीव ( बहुत जीव ) द्रव्यार्थ से कृतयुग्म हैं० ? Jain Education International १५ उत्तर - हे गौतम ! जीव ओघादेश (सामान्य) से कृतयुग्म हैं, किंतु योज, द्वापरयुग्म और कल्योज नहीं हैं । विधानादेश ( प्रत्येक की अपेक्षा ) कृतयुग्म, त्र्योज और द्वापरयुग्म नहीं, किन्तु कल्योज हैं । १६ प्रश्न - णेरड्या णं भंते ! दव्वट्टयाए - पुच्छा । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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