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________________ भगवती सूत्र - श. २५ उ. ४ द्रव्यादि की अपेक्षा युग्म प्ररूपणा भावार्थ - १२ प्रश्न - हे भगवन् ! यदि असंख्यात प्रदेशावगाढ़ है, तो कृतयुग्म प्रदेशावगाढ़ है ० ? १२ उत्तर - हे गौतम! कृतयुग्म प्रदेशावगाढ़ है, किन्तु ज्योज, द्वापरयुग्म और कल्योज प्रदेशावगाढ़ नहीं हैं। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और अद्धासमय भी । ३२६८ १३ प्रश्न - इमा णं भंते ! रयणप्पभा पुढवी किं ओगाढा, अणोगाढा ? १३ उत्तर - जहेव धम्मत्थिकाए, एवं जाव अहेसत्तमा, सोहम्मे एवं चैव, एवं जाव ईसिन्भारा पुढवी । भावार्थ - १३ प्रश्न - हे भगवन् ! यह रत्न प्रभा पृथ्वी अवगाढ़ है या अनवगाढ़ ? १३ उत्तर - हे गौतम! धर्मास्तिकाय के समान, यावत् अधः सप्तम पृथ्वी पर्यन्त तथा सौधर्म यावत् ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिये । विवेचन-धर्मास्तिकाय द्रव्य रूप से एक है । इसलिये उसमें चार का अपहार नहीं होता, एक ही अवस्थित रहता है। जीवास्तिकाय अनन्त होने से कृतयुग्म है । पुद्गलास्तिकाय यद्यपि अनन्त है, तथापि उसके संघात ( मिलने) और भेद ( पृथक् होने) के कारण उसका अनन्तपन अनवस्थित है. इसलिये वह कृतयुग्मादि चारों राशि रूप होता है | अद्वासमय में अतीत-अनागत काल में अवस्थित अनन्तपन होने से कृतयुग्मता है, प्रदेशार्थ रूप से सभी द्रव्य कृतयुग्म हैं, क्योंकि इनमें यथायोग्य असंख्यातपन और अनन्तपन अवस्थित है। धर्मास्तिकायादि तीन एक-एक द्रव्य होने से द्रव्यार्थ से तुल्य हैं और दूसरे द्रव्यों की अपेक्षा अल्प हैं। उनसे जीवास्तिकाय अनन्त गुण हैं। उनसे पुद्गलास्तिकाय और अद्धासमय उत्तरोत्तर अनन्त गुण हैं । प्रदेश रूप से धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय के प्रदेश असंख्यात हैं, वे परस्पर तुल्य हैं और दूसरे प्रदेशों की अपेक्षा अल्प हैं। उससे जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय, अद्धासमय और आकाशास्तिकाय उत्तरोत्तर अनन्त गुण हैं । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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