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________________ भगवती सूत्र - ग. २५ उ. ४ द्रव्यादि की अपेक्षा युग्म प्ररूपणा उत्तर - गोयमा ! उववायं पडुच्च, से तेणट्टेणं तं चैव । बेइंदियाणं जहा रइयाणं । एवं जाव वेमाणियाणं, सिद्धाणं जहा वणस्स - काइयाणं । भावार्थ - ३ प्रश्न - हे भगवन् ! वनस्पतिकायिक जीवों में कितने युग्म कहे हैं ? ३२६४ उत्तर - हे गौतम! वनस्पतिकायिक जीव कदाचित् कृतयुग्म होते हैं, कदाचित् त्र्योज, द्वापरयुग्म और कदाचित् कल्योज होते हैं । प्रश्न - हे भगवन् ! क्या कारण है कि ' वनस्पतिकायिक यावत् कदाचित् कल्योज होते हैं ? उत्तर - हे गौतम! उपपात (जन्म) की अपेक्षा ऐसा कहा है कि यावत् कल्योज होते हैं । बेइन्द्रिय के विषय में नैरयिकों के समान, यावत् वैमानिक पर्यन्त | सिद्ध वनस्पतिकाधिक जीवों के समान है । विवेचन - राशि अर्थात् संख्या को 'युग्म' कहते हैं । जिस राशि में से चार-चार का अपहार करने पर अन्त में चार शेष रहें, उस राशि को 'कृतयुग्म' कहते हैं, तीन शेष रहें, उसे 'त्र्यो,' दो शेष रहें, उसे 'द्वापरयुग्म' और एक शेष रहें, उसे 'कल्योज' कहते हैं । वनस्पतिकायिक जीव अनन्त हैं । इसलिए वे स्वाभाविक रूप से कृतयुग्म ही होते हैं, तथापि दूसरी गति से आ कर एक-दो इत्यादि जीव, उनमें उत्पन्न होते हैं, इसलिए वे जीव कृतयुग्म आदि चारों राशि रूप होते हैं । इसी प्रकार वनस्पतिकायिक जीव मरण की अपेक्षा भी कृतयुग्मादि चारों राशि होते हैं, किंतु उसकी यहाँ विवक्षा नहीं की है । ४ प्रश्न - इविहा णं भंते ! सव्वदव्वा पण्णत्ता ? ४ उत्तर - गोयमा ! छव्विहा सव्वदव्वा पण्णत्ता, तं जहा - धम्मत्थिकाए, अधम्मत्थिकाए जाव अद्धासमए । भावार्थ - ४ प्रश्न - हे भगवन् ! सर्व द्रव्य कितने प्रकार के कहे हैं ? ४ उत्तर - हे गौतम ! सर्व द्रव्य छह प्रकार के कहे हैं। यथा-धर्मास्ति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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