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भगवती मूत्र-श. २५ उ. ४ द्रव्यादि की अपेक्षा युग्म प्ररूपणा
समवहत (समुद्घात को प्राप्त), असमवहत, सातावेदक, असातावेदक, इन्द्रियोपयुक्त (इन्द्रियों के उपयोग वाले), नो-इन्द्रियोपयुक्त, साकारोपयुक्त और अनाकारोपयुक्त जीवों के अल्प-बहुत्व का कथन किया है । इसके लिये प्रज्ञापना सूत्र के तीसरे पद का अतिदेश किया है।
॥ पच्चीसवें शतक का तीसरा उद्देशक सम्पूर्ण ॥
शतक २५ उद्देशक ४
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MARARIN
द्रव्यादि की अपेक्षा युग्म प्ररूपणा
१ प्रश्न-कइ णं भंते ! जुम्मा पण्णत्ता ?
१ उत्तर-गोयमा ! चत्तारि जुम्मा पण्णता, तं जहा-कडजुम्मे, जाव कलिओगे।
प्रश्न-से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ-चत्तारि जुम्मा, पण्णत्ताकडजुम्मे जाव कलिओगे' ?
उत्तर-एवं जहा अट्ठारसमसए चउत्थे उद्देसए तहेष जाव से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ ।
भावार्थ-१ प्रश्न-हे भगवन् ! युग्म कितने कहे हैं ?
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