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भगवती सूत्र - २५ उ. ३ गति आदि का अल्प-वहुत्व
नारी नर नेरइया तिरित्थि सुर देवि सिद्ध तिरिया य । थोव असंखगुणा चउ संखगुणाणंतगुण दोण्णि ||
अर्थात् सब से अल्प मनुष्यिती ( स्त्रियां) हैं, उनसे मनुष्य असंख्यात गुण हैं, उनसे नैरयिक असंख्यात गुण है, उनसे तिर्यंचिनी अगख्यात गुण हैं. उनसे देव असंख्यात गुण हैं, उनसे देवियां संख्यात गुण हैं, उनसे सिद्ध अनन्त गुण हैं और उनसे तिर्यंव अनन्त गुण हैं। इसके पश्चात् सइन्द्रिय, एकेन्द्रिय आदि का अल्प - बहुत्व बताया है । इसके लिये भी प्रज्ञापना सूत्र के तीसरे पद का अतिदेश किया है। उसका सारांश इस प्रकार है
पण च उ-ति- अणिदिय, एगिदिय, सइंदिया, कमा हुति । योवा तिणिय अहिया, दो पंतगुणा विसेसाहिया ||
अर्थ- सब से अल्प पञ्चेन्द्रिय जीव हैं, उनसे चतुरिन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनमें तेइन्द्रिय विशेषाधिक है, उनसे बेइन्द्रिय विशेषाधिक हैं, उनसे अनिन्द्रिय अनन्त गुण हैं, उनसे एकेन्द्रिय अनन्त गुण है और उनसे सइन्द्रिय विशेषाधिक हैं ।
सकायिक जीवों के अल्पबहुत्व के लिये भी प्रज्ञापना सूत्र के तीसरे पद का अतिदेश किया है । सारांश इस प्रकार हैं
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तस ते उ-पुढ वि, जल-वाउ-काय अकाय-वणस्सड़ सकाया ।
थोव असंखगुणाहिय तिष्णि उ दोणंतगुण अहिया ||
अर्थ- सब से थोड़े सकायिक हैं, उनसे तेउकायिक जीव असंख्यात गुण हैं, उनसे पृथ्वीकायिक अपकायिक और वायुकायिक उत्तरोत्तर विशेषाधिक हैं, उनसे अकायिक अनन्त गुण हैं, उनसे वनस्पतिकायिक अनन्त गुण हैं और उनसे सकायिक विशेषाधिक हैं ।
इसके पश्चात् जीव, पुद्गल, अद्धा समय, सर्व द्रव्य, सर्व प्रदेश और सर्व पर्यायों के अल्प- बहुत्व का कथन किया है । यथा
जीवा पोग्गल - समया देव्व पएसा य पज्जवा चेव ।
थोवा णंताणंता विसेसाअहिया
दुवेऽणंता ||
अर्थ- सब से थोड़े जीव हैं, उनसे पुद्गल अनन्त गुण हैं, उनसे अद्धासमय अनन्त गुण हैं, उनसे सर्व द्रव्य विशेषाधिक हैं, उनसे सर्व प्रदेश अनन्त गुण हैं और उनसे सर्व पर्याय अनन्त गुण हैं । प्रज्ञापना सूत्र में इनके अल्प- बहुत्व के कारण का भी कथन किया है । इसके पश्चात् आयु-कर्म के बन्धक, अबन्धक, पर्याप्त, अपर्याप्त, सुप्त, जाग्रत,
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