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________________ ३२६० विसेसाहिया । भगवती सूत्र - श. २५ उ. ३ गति आदि का अल्प-बहुत्व 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! ' त्ति । || पणवीमइमे सए तईओ उद्देसो समत्तो ॥ भावार्थ - ६७ प्रश्न - हे भगवन् ! आयु-कर्म के बन्धक और अबन्धक जीवों में कौन किससे अला, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? ६७ उत्तर - हे गौतम! प्रज्ञापना सूत्र के तीसरे बहुवक्तव्यता पद के अनुसार, यावत् 'आयु-कर्म के अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं' तक । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं । विवेचन - नैरयिक, तिथंच मनुष्य, देव और सिद्ध इन पाँच की अल्प- बहुत्व के लिये प्रज्ञापना सूत्र के तीसरे पद का अतिदेश किया है। वहां का संक्षिप्त सार इस गाथा में बताया है- नर रइयां देवा सिद्धा तिरिया कमेण इह होंति । थोमसंख असंखा अनंतगुणिया अनंतगुणा || अर्थात् सब से थोड़े मनुष्य हैं। उनसे नैरयिक असंख्यात गुण हैं। उनसे देव असंख्यात गुण हैं | उनसे सिद्ध अनन्त गुण हैं और उनसे तियंच अनन्त गुण हैं । आठ गति के अल्प - बहुत्व के लिये भी प्रज्ञापना सूत्र के तीसरे पद का अतिदेश किया है । वहाँ का सारांश इस प्रकार है- पहले आठ गतियाँ ( जिनका कि अल्प- बहुत्व बताया जा रहा है) के नाम बताये जाते हैं । यथा Roar तिस्तथा तिर्यग् नरामरगतयः । स्त्री पुरुष भेदाद्वेधा, सिद्धिगतिश्चेत्यष्टौ ॥ अर्थात् - - १ नरकगति २ पुरुष तिर्यंच ३ स्त्री तिथंच ( तिर्यंचणी) ४ पुरुष मनुष्य गति ५ स्त्री मनुष्य गति ६ पुरुष देव गति ७ स्त्री देव गति और ८ सिद्ध गति । इनका अल्प- बहुत्व इस प्रकार है- Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004092
Book TitleBhagvati Sutra Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhevarchand Banthiya
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2006
Total Pages692
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size11 MB
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