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विसेसाहिया ।
भगवती सूत्र - श. २५ उ. ३ गति आदि का अल्प-बहुत्व
'सेवं भंते ! सेवं भंते ! ' त्ति ।
|| पणवीमइमे सए तईओ उद्देसो समत्तो ॥
भावार्थ - ६७ प्रश्न - हे भगवन् ! आयु-कर्म के बन्धक और अबन्धक जीवों में कौन किससे अला, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ?
६७ उत्तर - हे गौतम! प्रज्ञापना सूत्र के तीसरे बहुवक्तव्यता पद के अनुसार, यावत् 'आयु-कर्म के अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं' तक ।
'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है'कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं ।
विवेचन - नैरयिक, तिथंच मनुष्य, देव और सिद्ध इन पाँच की अल्प- बहुत्व के लिये प्रज्ञापना सूत्र के तीसरे पद का अतिदेश किया है। वहां का संक्षिप्त सार इस गाथा में बताया है-
नर रइयां देवा सिद्धा तिरिया कमेण इह होंति । थोमसंख असंखा अनंतगुणिया अनंतगुणा ||
अर्थात् सब से थोड़े मनुष्य हैं। उनसे नैरयिक असंख्यात गुण हैं। उनसे देव असंख्यात गुण हैं | उनसे सिद्ध अनन्त गुण हैं और उनसे तियंच अनन्त गुण हैं ।
आठ गति के अल्प - बहुत्व के लिये भी प्रज्ञापना सूत्र के तीसरे पद का अतिदेश किया है । वहाँ का सारांश इस प्रकार है- पहले आठ गतियाँ ( जिनका कि अल्प- बहुत्व बताया जा रहा है) के नाम बताये जाते हैं । यथा
Roar तिस्तथा तिर्यग् नरामरगतयः । स्त्री पुरुष भेदाद्वेधा, सिद्धिगतिश्चेत्यष्टौ ॥
अर्थात् - - १ नरकगति २ पुरुष तिर्यंच ३ स्त्री तिथंच ( तिर्यंचणी) ४ पुरुष मनुष्य गति ५ स्त्री मनुष्य गति ६ पुरुष देव गति ७ स्त्री देव गति और ८ सिद्ध गति ।
इनका अल्प- बहुत्व इस प्रकार है-
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